इस साल उन्होंने डेनियल जंग के साथ मिलकर 'सेविंग फेस' वृत्तचित्र पाकिस्तान की उन औरतों को पर बनाया है जो चेहरे पर तेज़ाब डाले जाने की शिकार हुई हैं या होती है इसमें एक पाक मूल के ब्रिटिश प्लास्टिक सर्जन की भूमिका केंद्र में है, जो ब्रिटेन से आकर पाकिस्तान में इन महिलाओं का इलाज करता है. इस डाक्यूमेंट्री को साल 2012 का सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र का पुरस्कार मिला है.
33 साल की शर्मीन ने सेविंग फेस और 'पाकिस्तांस तालिबान जनरेशन' के बारे बात की और बताया कि वो ब्राज़ील की पृष्ठभूमि पर बनी 'सिटी ऑफ़ गॉ़ड' क्यों बनाना चाहती हैं. प्रस्तुत है साक्षात्कार के मुख्य अंश:
प्रश्न: सेविंग फेस पर डेनियल के साथ मिलकर काम कैसे किया?
उत्तर: पिछले साल की शुरुआत में डेनियल ने मुझसे संपर्क किया. उसे इस विषय पर साथी की तलाश थी और हम लोग पहले भी इस विषय पर कई बार बात कर चुके थे, इसलिए मुझे लगा ये अच्छा मौका है साथ काम करने का. यह विषय अपने आप में ही काफी उत्तेजक था. क्योंकि दक्षिणी पंजाब में महिलाओं के चेहरे पर तेज़ाब डालने की घटना एकदम आम है और इससे पूरे साल में तक़रीबन 100 महिलाओं की जिंदगी ख़राब होती है. यह फिल्म एक ऐसे पाक मूल के ब्रिटिश प्लास्टिक सर्जन डॉ. मोहम्मद जवाद के बारे में है, जो ब्रिटेन से पाकिस्तान आता है और पीड़ित महिलाओं के जले हुए चेहरों को बचाने की कोशिश करता है. 'सेविंग फेस' महिलाओं के लिए आशा की कहानी भी है. क्योंकि इसमें एक महिला वकील, एक पीड़ित के हक के लिए लड़ती है और उसका बुरा हाल करने वालों को उनके अंजाम तक भी पहुंचती है.
प्रश्न: पिछले साल 'पाकिस्तांस तालिबान जनरेशन' ने इंटरनेशनल एम्मी अवार्ड जीता, इस फिल्म के निर्देशक डेनियल ऐज के साथ काम करने की शुरुआत कैसे हुई.
उत्तर : 'पाकिस्तांस तालिबान जनरेशन' के बारे में सोचते हुए मैं यूके में एक दिन चैनल-4 पर एक व्यक्ति को देख रही थी, जिसकी कलात्मक संवेदना और सौंदर्य शैली मुझसे एकदम मेल खा रही थी. मुझे लगा कि डेनियल से अच्छा साझेदार इस फिल्म के लिए कोई नहीं हो सकता है. हम दोनों में ही कहानी कहने का जुनून है. उनके साथ काम करने का बहुत शानदार अनुभव मिला. हम दोनों ने कहानी को बड़ी ही संवेदना के साथ साझा किया और उसे फिल्म का रूप दिया बाकी आप जानते हैं ये हमारे करियर की सबसे उम्दा डाक्यूमेंट्री साबित हुई. हालांकि एम्मी अवार्ड जीतने को लेकर मेरे बड़े कड़वे अनुभव भी रहे. जिस दिन ये अवार्ड समारोह था. उसी दिन मेरे पिता इस दुनिया से रुखसत कर गए. मेरी बहन का कॉल आया. मैंने पहली फ्लाईट पकड़कर कराची का रुख किया. जब मैं प्लान में घुस रही थी, तभी मुझे डेनियल का कॉल आया.कि हमारी फिल्म ने अवार्ड जीत लिया है.
प्रश्न: आपने इस संवेदन शील मुद्दे पर बात करने के लिए लोगों को किस तरह तलाश किया।
उत्तर : हमारी क्रू टीम ने छह महीने तक घूम-घूमकर लोगों से बात की ,उनको भरोसे में लिया. हमने मदरसों और तालिबान के साथ कुछ अच्छे रिश्ते कायम करने की भी कोशिश की. हालांकि इस काम ने हमारा कुछ समय जरूर लिया, जिससे कि उनके दरवाजे हमारे लिए खुल जाएं. मेरी हमेशा से ही कोशिश रही है कि नीचे के लोगों के साथ रहकर काम करना चाहिए क्योंकि वहीँ से आपको नए स्त्रोत मिलेंगे. हमारे लिए चिंता का सबसे बड़ा कारण 'पाकिस्तांस तालिबान जनरेशन' फिल्म में तालिबान द्वारा अपहरण किए गए लोगों की शूटिंग को लेकर था। ऐसा कई बार हुआ जब हमें साक्षात्कार रद्द करने पड़े क्योंकि हमारा स्त्रोत विश्वसनीय नहीं था. हमारे एक बार अच्छे संबंध बन गए तो हमारी पहुंच मदरसे तक भी हो गई थी. हमने मदरसे को अपनी बात कहने की पूरी आजादी दे रखी थी. बच्चे और मदरसे अध्यापक हमसे बात करने को उत्सुक थे और उन्होंने अपने हिस्से की वो कहानी बताई, जिसमे वे वाकई विश्वास करते थे. वे ये भी जानना चाहते थे कि बाकी बची दुनिया में क्या हो रहा है.
प्रश्न: पाकिस्तान में इस फिल्म को शूट किया गया है, क्या आपने इसे वहां दिखाने का फैसला किया.
उत्तर : दुर्भाग्य से पाकिस्तान में डाक्यूमेंट्री फिल्म का कोई कल्चर नहीं है। वहां के टीवी चैनल भी वही दिखाते है जिसकी डिमांड होती है. दिसंबर 2011 में मैंने कराची में सर्मीन ओबैद फिल्म्स नाम का खुद का प्रोडक्शन हाउस खोला है और ये हाउस पाकिस्तानियों को नॉन-फिक्शन (वास्तविक) कहानी को कहने की प्रेरणा दे रहा है और हमें हज़ार से ज्यादा नई कहानियां भी मिली.
प्रश्न: क्या कोई ऐसी फिल्म है, जिसे आप बनाने की इच्छा रखती हैं
उत्तर : 'सिटी ऑफ़ गॉ़ड क्योंकि यह एक जीवंत फिल्म है. इसमें ब्राज़ील की झुग्गी बस्तियां दिखाई गई हैं जो हमारे कराची में भी हैं और ये शहर का दो भागों में बांटती है.ऐसी कई चीजें हैं, जो कराची से मेल खाती हैं. मुझे आशा है कि ऐसा दिन आएगा, जब मैं भी ऐसे ही विषय पर फिल्म बनाउंगी.
वॉल स्ट्रीट जर्नल से साभार: हिंदी में प्रस्तुति : अश्विनी श्रोत्रिय
33 साल की शर्मीन ने सेविंग फेस और 'पाकिस्तांस तालिबान जनरेशन' के बारे बात की और बताया कि वो ब्राज़ील की पृष्ठभूमि पर बनी 'सिटी ऑफ़ गॉ़ड' क्यों बनाना चाहती हैं. प्रस्तुत है साक्षात्कार के मुख्य अंश:
प्रश्न: सेविंग फेस पर डेनियल के साथ मिलकर काम कैसे किया?
उत्तर: पिछले साल की शुरुआत में डेनियल ने मुझसे संपर्क किया. उसे इस विषय पर साथी की तलाश थी और हम लोग पहले भी इस विषय पर कई बार बात कर चुके थे, इसलिए मुझे लगा ये अच्छा मौका है साथ काम करने का. यह विषय अपने आप में ही काफी उत्तेजक था. क्योंकि दक्षिणी पंजाब में महिलाओं के चेहरे पर तेज़ाब डालने की घटना एकदम आम है और इससे पूरे साल में तक़रीबन 100 महिलाओं की जिंदगी ख़राब होती है. यह फिल्म एक ऐसे पाक मूल के ब्रिटिश प्लास्टिक सर्जन डॉ. मोहम्मद जवाद के बारे में है, जो ब्रिटेन से पाकिस्तान आता है और पीड़ित महिलाओं के जले हुए चेहरों को बचाने की कोशिश करता है. 'सेविंग फेस' महिलाओं के लिए आशा की कहानी भी है. क्योंकि इसमें एक महिला वकील, एक पीड़ित के हक के लिए लड़ती है और उसका बुरा हाल करने वालों को उनके अंजाम तक भी पहुंचती है.
प्रश्न: पिछले साल 'पाकिस्तांस तालिबान जनरेशन' ने इंटरनेशनल एम्मी अवार्ड जीता, इस फिल्म के निर्देशक डेनियल ऐज के साथ काम करने की शुरुआत कैसे हुई.
उत्तर : 'पाकिस्तांस तालिबान जनरेशन' के बारे में सोचते हुए मैं यूके में एक दिन चैनल-4 पर एक व्यक्ति को देख रही थी, जिसकी कलात्मक संवेदना और सौंदर्य शैली मुझसे एकदम मेल खा रही थी. मुझे लगा कि डेनियल से अच्छा साझेदार इस फिल्म के लिए कोई नहीं हो सकता है. हम दोनों में ही कहानी कहने का जुनून है. उनके साथ काम करने का बहुत शानदार अनुभव मिला. हम दोनों ने कहानी को बड़ी ही संवेदना के साथ साझा किया और उसे फिल्म का रूप दिया बाकी आप जानते हैं ये हमारे करियर की सबसे उम्दा डाक्यूमेंट्री साबित हुई. हालांकि एम्मी अवार्ड जीतने को लेकर मेरे बड़े कड़वे अनुभव भी रहे. जिस दिन ये अवार्ड समारोह था. उसी दिन मेरे पिता इस दुनिया से रुखसत कर गए. मेरी बहन का कॉल आया. मैंने पहली फ्लाईट पकड़कर कराची का रुख किया. जब मैं प्लान में घुस रही थी, तभी मुझे डेनियल का कॉल आया.कि हमारी फिल्म ने अवार्ड जीत लिया है.
प्रश्न: आपने इस संवेदन शील मुद्दे पर बात करने के लिए लोगों को किस तरह तलाश किया।
उत्तर : हमारी क्रू टीम ने छह महीने तक घूम-घूमकर लोगों से बात की ,उनको भरोसे में लिया. हमने मदरसों और तालिबान के साथ कुछ अच्छे रिश्ते कायम करने की भी कोशिश की. हालांकि इस काम ने हमारा कुछ समय जरूर लिया, जिससे कि उनके दरवाजे हमारे लिए खुल जाएं. मेरी हमेशा से ही कोशिश रही है कि नीचे के लोगों के साथ रहकर काम करना चाहिए क्योंकि वहीँ से आपको नए स्त्रोत मिलेंगे. हमारे लिए चिंता का सबसे बड़ा कारण 'पाकिस्तांस तालिबान जनरेशन' फिल्म में तालिबान द्वारा अपहरण किए गए लोगों की शूटिंग को लेकर था। ऐसा कई बार हुआ जब हमें साक्षात्कार रद्द करने पड़े क्योंकि हमारा स्त्रोत विश्वसनीय नहीं था. हमारे एक बार अच्छे संबंध बन गए तो हमारी पहुंच मदरसे तक भी हो गई थी. हमने मदरसे को अपनी बात कहने की पूरी आजादी दे रखी थी. बच्चे और मदरसे अध्यापक हमसे बात करने को उत्सुक थे और उन्होंने अपने हिस्से की वो कहानी बताई, जिसमे वे वाकई विश्वास करते थे. वे ये भी जानना चाहते थे कि बाकी बची दुनिया में क्या हो रहा है.
प्रश्न: पाकिस्तान में इस फिल्म को शूट किया गया है, क्या आपने इसे वहां दिखाने का फैसला किया.
उत्तर : दुर्भाग्य से पाकिस्तान में डाक्यूमेंट्री फिल्म का कोई कल्चर नहीं है। वहां के टीवी चैनल भी वही दिखाते है जिसकी डिमांड होती है. दिसंबर 2011 में मैंने कराची में सर्मीन ओबैद फिल्म्स नाम का खुद का प्रोडक्शन हाउस खोला है और ये हाउस पाकिस्तानियों को नॉन-फिक्शन (वास्तविक) कहानी को कहने की प्रेरणा दे रहा है और हमें हज़ार से ज्यादा नई कहानियां भी मिली.
प्रश्न: क्या कोई ऐसी फिल्म है, जिसे आप बनाने की इच्छा रखती हैं
उत्तर : 'सिटी ऑफ़ गॉ़ड क्योंकि यह एक जीवंत फिल्म है. इसमें ब्राज़ील की झुग्गी बस्तियां दिखाई गई हैं जो हमारे कराची में भी हैं और ये शहर का दो भागों में बांटती है.ऐसी कई चीजें हैं, जो कराची से मेल खाती हैं. मुझे आशा है कि ऐसा दिन आएगा, जब मैं भी ऐसे ही विषय पर फिल्म बनाउंगी.
वॉल स्ट्रीट जर्नल से साभार: हिंदी में प्रस्तुति : अश्विनी श्रोत्रिय