Monday, July 26, 2010

नए नहीं है खेल संस्थाओं के झगडे

आजादी से पहले की बात है। भारत में स्विमिंग की दो संस्थाएं काम कर रही थी। नेशनल स्विमिंग एसोसिएशन कोलकाता स्थित संस्था थी। इस संस्था को दुनिया में तैराकी की सर्वोच्च संस्था फीना ने १९३२-३३ में मान्यता दे रखी थी। भारत की दूसरी संस्था भारतीय तैराकी संघ थी, इसे भारतीय ओलिम्पिक संघ का समर्थन प्राप्त था। दोनों संस्थाएं किसी भी बड़ी प्रतियोगिता में अपने -अपने खिलाड़ियों को भेज देती थी। इस तरह दो संस्थाओं की वजह से देश-विदेश में असमंजस की स्थिति पैदा होती थी। दोनों अपने अस्तित्व को बचाने के लिए आपस में टकराती रहती थी। १९४८ में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के इस मामले में दखल देने के बाद दोनों संस्थाओं को एक करके भारतीय तैराकी संघ बनाया।

इस घटना से यह पता चलता है कि भारत में खेल संस्थाओं के विवाद कोई नई बात नहीं हैं, हालांकि तब जब एक खेल कि दो संस्थाएं अपनी-अपनी दावेदारी पेश करती हों। आजकल हॉकी की संस्थाओं का झगड़ा जगजाहिर है। भारतीय हॉकी संघ एवं हॉकी इंडिया दोनों ही इन दिनों हॉकी पर अपना अधिकार जता रहीं हैं। आईएचएफ को उनके सचिव पर एक निजी चैनल के द्वारा स्टिंग 'ऑपरेशन चक दे' के तहत खिलाड़ियों के चयन के लिए रिश्वत लेते हुए पकड़े जाने पर बर्खास्त कर दिया था। हॉकी संघ के बर्खास्त होने के बाद हॉकी इंडिया बनाया गया, हालांकि कई राज्य हॉकी संघ एवं अकादमी इसके अस्तित्व को सिरे से ख़ारिज कर चुकी हैं। बार-बार इसके सदस्यों और अध्यक्ष पद पर बैठे लोगों पर सवाल किए जाते हैं कि वे सब असवैंधानिक रूप से इन पदों पर विराजमान हैं।

भोपाल में ६३वी रंगास्वामी कप टूर्नामेंट मध्य प्रदेश खेल मंत्रालय व आइएचएफ के तत्वाधान में सफलतापूर्वक आयोजित की गई। इस टूर्नामेंट के होने से हॉकी इंडिया कि भौहें तन गईं। उनका कहना था कि हॉकी इंडिया इस टूर्नामेंट को अवैध करार देती हैं तथा साथ ही साथ किसी भी खिलाड़ी ने इसमें हिस्सा लिया, तो वे उनको बैन कर देंगे। हाल ही में इंडियन हॉकी फेडरेशन ने हॉकी इंडिया में होने वाले आगामी चुनावों पर एतराज जताते हुए कहा कि बिना हॉकी संघ को लेकर चुनाव करना गलत है। यह आइओए, सरकार एवं हॉकी इंडिया की मिली भगत है। इसके खिलाफ हम न्यायालय जाने वाले हैं। इन घटनाक्रम से पता चलता है कि विवाद इतनी जल्दी ख़त्म होने वाला नहीं।

सन १९७१ में भारतीय वॉलीबाल संघ के चुनाव होने के बाद इसके कुछ सदस्य नाराज हो गए और अपना अलग संगठन बना लिया था, लेकिन यह फूट ज्यादा दिनों तक नहीं रही। कई बार देखने में आता है कि खेल प्रशासक अपने निजी स्वार्थों एवं सत्ता कि चाह में खेल का अहित होने देते हैं। हॉकी की दो संस्थाओं कि लड़ाई सिर्फ सत्ता और स्वाभिमान कि लड़ाई रह गई है। इसके बीच में खेल कहां आता है, यह शायद खेल को भी नहीं पता।
इस भीड़ मे आजकल कौन सुनता है !

Website templates

Powered By Blogger