Tuesday, July 28, 2009

क्या विदेशनीति में इच्छा शक्ति की कमी है !


लोगों का कहना है कि भारत अपने आप को मिस्त्र में पाकिस्तान के हाथों बेच आया है ! क्या ये सब कहना वाजिब है ? शायद हो भी सकता है ! यहाँ बेचना शब्द इतना ठीक नही हैं ! यहाँ हम कह सकते है की भारत ने अपने महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दे से मुहँ मोड़ लिया , जबकि आतंक वाद का मुद्दा केन्द्र में है ! प्रधानमंत्री , पाक के साथ इस बात पर सहमत हो गए की आतंकवादी घटनायों के मद्देनज़र भारत पाक से बातचीत बंद नही करेंगा !

इसका मतलब क्या समझा जाए ? , कि आतंकी घटनाये होती रहेंगी लेकिन पाक के साथ हमारे सम्बन्ध बने रहेंगे , और यदि हमने बातचीत बंद की भी तो पाकिस्तान इस साझा पत्र का हवाला देंगा की आपने तो कहा था कि
बातचीत बंद नही होंगी , क्या हमारे प्रधानमंत्री भूल गए कि २६/११ के हमले में पाकिस्तान के आतंकी शामिल थे ? , क्या पाक सरकार की बॉडी आईएसआई का हाथ नही था ? इसे भी भूल गए ?

तो फिर यह भूल क्यों हुई ? , क्या इसमे किसी तीसरी ताकत का हाथ था जिसने हमें झुकने पर मजबूर किया ! हिलेरी क्लिंटन ने साफ साफ कहा की अमेरिका की भारत-पाक रिश्तों को जोड़ने में कोई भूमिका नही रही , लेकिन फिर भी उन्होंने ने इस पहल का स्वागत किया , अब बात फिर से भारत पाक की करे तो आखिरकार भारत के प्रधानमंत्री की कौन सी मजबूरी थी ? , क्या भारत का पाकिस्तान के बिना काम नही चल रहा है ! बातचीत की जल्दी हमें तो नही थी ! जो भी नुकसान हो रहा था पाक का हो रहा है , उनके उद्योगपतियो के दबाव बने हुए थे, कि भारत पाक के बीच व्यापार फिर से शुरू किया जाए और कलाकारों का आना जाना लगा रहे ! तो क्यों हमने फिर से पाक से यारी निभा ली , जबकि प्रधानमंत्री को आतंकियों पर कार्यवाही करने की मांग करनी चाहिए थी ! ऊपर से पाक ने बलूचिस्तान में आतंकी गतिविधियों में भारत का हाथ है इसका जबाव मनमोहन से माँगा , और इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री खामोश रहे !

मैं कोई विदेश नीति का जानकर नहीं हूँ पर एक बात कहना चाहता हूँ की कुछ सालों से हर बाहरी मुद्दे पर हमारी विदेश नीति विफल रही है ! प्रधानमंत्री को यह पता है कि कांग्रेस को जनाधार आतंकवाद के मुद्दे पर ही मिला है और जो रवैया पिछली सरकार का पाक के प्रति था उसे लोगों ने सराहा था ! परन्तु अब अचानक से हाथ मिला लेना , भारत की जनता के साथ सिर्फ़ विश्वासघात को दर्शाता है ! क्योंकि हर कोई जानता है जब -जब पाक से दोस्ती करने जाते है वह पलटकर काटता है और पाक को भी पता है कि भारत किसी भी घटना को भूलकर फिर से दोस्ती करने को तैयार हो ही जायेगा !


"एस एम् कृष्णा" केवल नाम के विदेशमंत्री है ,
उनका काम सिर्फ़ साफ सुथरे कपड़े पहनकर बैठना है ,
विदेश के सारे मामले पीएम्ओ के तों में है !
-- यशवंत सिन्हा (नेता , बीजेपी )

Saturday, July 18, 2009

ये यूपी की माया है !


मुझे नही पता कि कितने लोग मायावती के फैसले से सहमत होंगे कि उन्होंने रीता बहुगुणा को जेल भिजवा दिया , लेकिन मेरा यह कहना है कि क्या मायावती भी इतनी पाक साफ है कि कभी किसी भी तरह कि अभद्र भाषा का प्रयोग नही करती ! अगर सिर्फ़ मायावती की बात करें तो इस समय वह सत्ता के धुंए में मदहोश है ! और उन्हें इस समय कोई अपने आस-पास नही दिखाई देता , और उनके पास जी-हुजूरी वाले लोगों की फौज है , उनके पास ऐसा कोई आदमी नही है जो उनसे ये कहे कि बहनजी यह ग़लत है इसे ना करें , क्योंकि बहनजी को ना फ़रमानी मंजूर नही ! यूपी में लगने वाली उनकी मूर्तियों के पीछे क्या रहस्य है यह किसी को नहीं पता , आखिर वह मूर्तियाँ बनाकर क्या साबित करना चाहती है , क्या उन्हें यह लगता है कि वह आज जिस कुर्सी पर बैठी है उस पर वह हमेशा बनी रहेंगी , या फिर उन्हें पता नही कि अगर कल को कोई नया मुख्यमंत्री आया , तो उन हजारों करोडो की लागत से बनी मूर्तियों को ढहा देंगा ! तो फिर ये इतनी फालतू कसरत क्यों ? और इतने पैसे की बर्बादी क्यों ?
क्या उन्हें पता है दलितों की पार्टी होने के बावजूद सबसे ज्यादा दलितों की हालत यूपी में ही ख़राब है ! क्यों वो इस बात को नहीं समझती कि अगर वह जितना पैसे फालतू के निर्माण कार्य में लगा रही है उतना अगर गरीबों के लिए लगाया होता तो स्थिति थोडी सुधर सकती है ! क्योंकि मेरे ख्याल से और ये बात सभी जानते होंगे कि दलित नेताओ की मूर्तियों से किसी भी दलित का भला होने से रहा , या फिर अपने जन्मदिन पर करोडो रुपए का खर्चा करके किसी दलित का का चूल्हा नही जल सकता , जरा सोचिये एक तरफ़ मायावती अपना बड़ा से केक काट रही है , दावतें दी जा रही है और दूसरी तरफ़ बच्चे रात को बिना खाने खाए सो जाते है ! कितना अजीब है कि दलित मुख्यमंत्री तक इनकी आवाज नही पहुँच पाती ! ऊपर से बहन जी प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले हुए है ! अभी भोपाल में "माखन लाल विश्वविद्यालय" में पत्रकारिता के लिए प्रवेश परीक्षा देने गया था , वहां पर झाँसी से आए एक मित्र ने बताया की सपा के गुंडों से जनता बुरी तरह से त्रस्त आ चुकी थी , इसीलिए जनता ने मायावती को चुना लेकिन स्थिति जस की तस रही वहीं काम अब बीएसपी वाले कर रहे है ! उसके बाद भी मायावती बड़े बड़े दावे करती रहती है ! एनडीटीवी के पत्रकार कमाल खान का कहना है की दरअसल मायावती बड़े बड़े बयान इसीलिए देती है कि वो अपने आप को बड़े बड़े नेताओ से भी बड़ा बताना चाहती है , मायावती हर बात को अपने ऊपर व्यक्तिगत ले लेती है और बार-बार प्रेस कांफ्रेंस करके बड़े बयान देती है ! खैर बात इतनी सी है की इस तरह की सामंती शाही का लोकतंत्र में कोई स्थान नही है ! मायावती को समझना चाहिए कि लोकसभा के चुनाव में उनका जो हश्र यूपी में हुआ उससे साफ पता चलता है कि जनता उनके काम से खुश नही है !

Friday, July 17, 2009

नया आवरण !

मुझमें और मेरी आत्मा में क्या फर्क है ?
शायद ये कि मैं दिखता हूँ , वह दिखती नहीं
शायद ये कि मैं अपवित्र हूँ , और वो पवित्र
शायद ये कि मर सकता हूँ मैं एक दिन , लेकिन वो नहीं !

या शायद ये कि इस जहाँ में मेरे साथ है मेरे अपने लेकिन , उसके साथ कोई नहीं !
क्यों तुम गुमनाम सी चुपचाप सी देखती रहती हो वो सब ? , जो मैं दिन-भर करता हूँ
क्यों तुम किसी मोड़ पर आकर यह नहीं कहती कि मैं कर रहा हूँ जो भी , वह ग़लत है या फिर सही !
या फिर तुम्हे कोई फर्क नही पड़ता कि मुझे मिले स्वर्ग या नरक , जाना होगा तुम्हे मुझे एक दिन छोड़कर,
और तज लोगी फिर से कोई नया आवरण !
इस भीड़ मे आजकल कौन सुनता है !

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