Thursday, April 9, 2009

शून्य


पने
ही आप से , द्वंद है मेरा
है गतिरोध , अपने आप से
क्यों शून्य बनाकर तुमने
छोड़ दिया इस जहाँ में !

इस शून्य को एक बनाने में
जतन किए थे , मैंने कितने
एक बिन्दु से चलता था मैं
घूमकर आ जाता उस पर

हसरत मेरी जाती रही , हर सपना मेरा टूटता रहा !
इस शून्य की खाई में गिरकर , पल पल मरता रहा !
इस भीड़ मे आजकल कौन सुनता है !

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