Tuesday, July 28, 2009

क्या विदेशनीति में इच्छा शक्ति की कमी है !


लोगों का कहना है कि भारत अपने आप को मिस्त्र में पाकिस्तान के हाथों बेच आया है ! क्या ये सब कहना वाजिब है ? शायद हो भी सकता है ! यहाँ बेचना शब्द इतना ठीक नही हैं ! यहाँ हम कह सकते है की भारत ने अपने महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दे से मुहँ मोड़ लिया , जबकि आतंक वाद का मुद्दा केन्द्र में है ! प्रधानमंत्री , पाक के साथ इस बात पर सहमत हो गए की आतंकवादी घटनायों के मद्देनज़र भारत पाक से बातचीत बंद नही करेंगा !

इसका मतलब क्या समझा जाए ? , कि आतंकी घटनाये होती रहेंगी लेकिन पाक के साथ हमारे सम्बन्ध बने रहेंगे , और यदि हमने बातचीत बंद की भी तो पाकिस्तान इस साझा पत्र का हवाला देंगा की आपने तो कहा था कि
बातचीत बंद नही होंगी , क्या हमारे प्रधानमंत्री भूल गए कि २६/११ के हमले में पाकिस्तान के आतंकी शामिल थे ? , क्या पाक सरकार की बॉडी आईएसआई का हाथ नही था ? इसे भी भूल गए ?

तो फिर यह भूल क्यों हुई ? , क्या इसमे किसी तीसरी ताकत का हाथ था जिसने हमें झुकने पर मजबूर किया ! हिलेरी क्लिंटन ने साफ साफ कहा की अमेरिका की भारत-पाक रिश्तों को जोड़ने में कोई भूमिका नही रही , लेकिन फिर भी उन्होंने ने इस पहल का स्वागत किया , अब बात फिर से भारत पाक की करे तो आखिरकार भारत के प्रधानमंत्री की कौन सी मजबूरी थी ? , क्या भारत का पाकिस्तान के बिना काम नही चल रहा है ! बातचीत की जल्दी हमें तो नही थी ! जो भी नुकसान हो रहा था पाक का हो रहा है , उनके उद्योगपतियो के दबाव बने हुए थे, कि भारत पाक के बीच व्यापार फिर से शुरू किया जाए और कलाकारों का आना जाना लगा रहे ! तो क्यों हमने फिर से पाक से यारी निभा ली , जबकि प्रधानमंत्री को आतंकियों पर कार्यवाही करने की मांग करनी चाहिए थी ! ऊपर से पाक ने बलूचिस्तान में आतंकी गतिविधियों में भारत का हाथ है इसका जबाव मनमोहन से माँगा , और इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री खामोश रहे !

मैं कोई विदेश नीति का जानकर नहीं हूँ पर एक बात कहना चाहता हूँ की कुछ सालों से हर बाहरी मुद्दे पर हमारी विदेश नीति विफल रही है ! प्रधानमंत्री को यह पता है कि कांग्रेस को जनाधार आतंकवाद के मुद्दे पर ही मिला है और जो रवैया पिछली सरकार का पाक के प्रति था उसे लोगों ने सराहा था ! परन्तु अब अचानक से हाथ मिला लेना , भारत की जनता के साथ सिर्फ़ विश्वासघात को दर्शाता है ! क्योंकि हर कोई जानता है जब -जब पाक से दोस्ती करने जाते है वह पलटकर काटता है और पाक को भी पता है कि भारत किसी भी घटना को भूलकर फिर से दोस्ती करने को तैयार हो ही जायेगा !


"एस एम् कृष्णा" केवल नाम के विदेशमंत्री है ,
उनका काम सिर्फ़ साफ सुथरे कपड़े पहनकर बैठना है ,
विदेश के सारे मामले पीएम्ओ के तों में है !
-- यशवंत सिन्हा (नेता , बीजेपी )

Saturday, July 18, 2009

ये यूपी की माया है !


मुझे नही पता कि कितने लोग मायावती के फैसले से सहमत होंगे कि उन्होंने रीता बहुगुणा को जेल भिजवा दिया , लेकिन मेरा यह कहना है कि क्या मायावती भी इतनी पाक साफ है कि कभी किसी भी तरह कि अभद्र भाषा का प्रयोग नही करती ! अगर सिर्फ़ मायावती की बात करें तो इस समय वह सत्ता के धुंए में मदहोश है ! और उन्हें इस समय कोई अपने आस-पास नही दिखाई देता , और उनके पास जी-हुजूरी वाले लोगों की फौज है , उनके पास ऐसा कोई आदमी नही है जो उनसे ये कहे कि बहनजी यह ग़लत है इसे ना करें , क्योंकि बहनजी को ना फ़रमानी मंजूर नही ! यूपी में लगने वाली उनकी मूर्तियों के पीछे क्या रहस्य है यह किसी को नहीं पता , आखिर वह मूर्तियाँ बनाकर क्या साबित करना चाहती है , क्या उन्हें यह लगता है कि वह आज जिस कुर्सी पर बैठी है उस पर वह हमेशा बनी रहेंगी , या फिर उन्हें पता नही कि अगर कल को कोई नया मुख्यमंत्री आया , तो उन हजारों करोडो की लागत से बनी मूर्तियों को ढहा देंगा ! तो फिर ये इतनी फालतू कसरत क्यों ? और इतने पैसे की बर्बादी क्यों ?
क्या उन्हें पता है दलितों की पार्टी होने के बावजूद सबसे ज्यादा दलितों की हालत यूपी में ही ख़राब है ! क्यों वो इस बात को नहीं समझती कि अगर वह जितना पैसे फालतू के निर्माण कार्य में लगा रही है उतना अगर गरीबों के लिए लगाया होता तो स्थिति थोडी सुधर सकती है ! क्योंकि मेरे ख्याल से और ये बात सभी जानते होंगे कि दलित नेताओ की मूर्तियों से किसी भी दलित का भला होने से रहा , या फिर अपने जन्मदिन पर करोडो रुपए का खर्चा करके किसी दलित का का चूल्हा नही जल सकता , जरा सोचिये एक तरफ़ मायावती अपना बड़ा से केक काट रही है , दावतें दी जा रही है और दूसरी तरफ़ बच्चे रात को बिना खाने खाए सो जाते है ! कितना अजीब है कि दलित मुख्यमंत्री तक इनकी आवाज नही पहुँच पाती ! ऊपर से बहन जी प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले हुए है ! अभी भोपाल में "माखन लाल विश्वविद्यालय" में पत्रकारिता के लिए प्रवेश परीक्षा देने गया था , वहां पर झाँसी से आए एक मित्र ने बताया की सपा के गुंडों से जनता बुरी तरह से त्रस्त आ चुकी थी , इसीलिए जनता ने मायावती को चुना लेकिन स्थिति जस की तस रही वहीं काम अब बीएसपी वाले कर रहे है ! उसके बाद भी मायावती बड़े बड़े दावे करती रहती है ! एनडीटीवी के पत्रकार कमाल खान का कहना है की दरअसल मायावती बड़े बड़े बयान इसीलिए देती है कि वो अपने आप को बड़े बड़े नेताओ से भी बड़ा बताना चाहती है , मायावती हर बात को अपने ऊपर व्यक्तिगत ले लेती है और बार-बार प्रेस कांफ्रेंस करके बड़े बयान देती है ! खैर बात इतनी सी है की इस तरह की सामंती शाही का लोकतंत्र में कोई स्थान नही है ! मायावती को समझना चाहिए कि लोकसभा के चुनाव में उनका जो हश्र यूपी में हुआ उससे साफ पता चलता है कि जनता उनके काम से खुश नही है !

Friday, July 17, 2009

नया आवरण !

मुझमें और मेरी आत्मा में क्या फर्क है ?
शायद ये कि मैं दिखता हूँ , वह दिखती नहीं
शायद ये कि मैं अपवित्र हूँ , और वो पवित्र
शायद ये कि मर सकता हूँ मैं एक दिन , लेकिन वो नहीं !

या शायद ये कि इस जहाँ में मेरे साथ है मेरे अपने लेकिन , उसके साथ कोई नहीं !
क्यों तुम गुमनाम सी चुपचाप सी देखती रहती हो वो सब ? , जो मैं दिन-भर करता हूँ
क्यों तुम किसी मोड़ पर आकर यह नहीं कहती कि मैं कर रहा हूँ जो भी , वह ग़लत है या फिर सही !
या फिर तुम्हे कोई फर्क नही पड़ता कि मुझे मिले स्वर्ग या नरक , जाना होगा तुम्हे मुझे एक दिन छोड़कर,
और तज लोगी फिर से कोई नया आवरण !

Thursday, April 9, 2009

शून्य


पने
ही आप से , द्वंद है मेरा
है गतिरोध , अपने आप से
क्यों शून्य बनाकर तुमने
छोड़ दिया इस जहाँ में !

इस शून्य को एक बनाने में
जतन किए थे , मैंने कितने
एक बिन्दु से चलता था मैं
घूमकर आ जाता उस पर

हसरत मेरी जाती रही , हर सपना मेरा टूटता रहा !
इस शून्य की खाई में गिरकर , पल पल मरता रहा !

Tuesday, March 24, 2009

या मर चुके हो तुम भी मेरी तरह....


मैं आखिरी बार कब रोया था , मुझे नही पता ! लेकिन मैं आज इतना जानता हूँ , कि अब मेरी आत्मा मर चुकी है ! वो क्या समय था , जब जरा सी बातों पर आंसू की गंगा बह निकलती थी , और एक आज का दिन है जब आँखों के नीचे केवल आंसू के सूखे निशान रह गए है ! जो इस इन्तजार में है , कि कब कोई गम आए और फिर से आंसू की धारा इसी जगह के ऊपर से निकले , ताकि फिर से ये निशान हरे भरे हो जाए और फिर ये इस बात का सबूत होगा कि मैं शायद अभी तक जिन्दा हूँ !
पर क्या मुझे जिन्दा होने का सबूत केवल मेरे आंसू से देना होगा ? क्या मेरा हरकत करता हुआ शरीर और मेरी श्वसन क्रिया का कोई मोल नही ? , क्या मेरे वादों का कोई मोल नही ?, क्यों तुम्हे मेरे आंसू अच्छे और सच्चे लगते है ? क्या मेरे आंसू देखकर तुमहरा दिल नही पसीजता ? क्या तुम्हे रोना नही आता ? और अगर मेरे आंसू देखकर तुम्हारे आंसू नही निकलते , तो शायद तुम भी मर चुके हो , मेरी तरह !

Thursday, March 19, 2009

कौन प्रधानमंत्री ?

चुनाव आते ही मुझे बड़ा अच्छा लगने लगता है ऐसा लगता है अब कुछ दिनों के लिए बोरियत तो दूर होंगी ! दरअसल में ऐसा इसीलिए कह रहा हूँ क्योंकि अब हमे फालतू के रियलिटी टीवी शो बजाय सच्चे और अच्छे शो देखने को मिलेंगे जी हाँ सही पकड़ा आपने कौन बनेगा प्रधानमंत्री ! खूब सारे डायलौग बिना एडिट किए हुए सुनने को मिलेंगे बहुत सारे सीन बिना कटे हुए मिलेंगे और सबसे बड़ी बात इसमे एसएम्एस पर पैसे भी खर्च नही करने पड़ेंगे !

सभी आजकल प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए लोट लगा रहे है जैसे ये कोई आम कुर्सी नही रजा विक्रमादित्य की ३२ पुतलियों का सिंहासन हो हर कोई प्रधानमंत्री बनना चाहता है ! UPA में खींचतान तो कई दिनों से चल रही है पार्टी के अन्दर से राहुल को PM बनाने जुगत चल रही है लेकिन सोनिया कह चुकी है की मनमोहन ही अगले PM होंगे ! यहीं हाल UPA के घटक दलों का है शरद पवार पहले ही मराठी कार्ड खेल चुके है और मांग कर रहे है की अबकी बार मराठी मानुष !

खैर अगला खेमा NDA का है उसमे भी भाजपा आपसी झगडे सुलझाने में लगी है , पहले मोदी, आडवानी को चुनौती देने में लगे थे, फिर बाद में शिवसेना सुप्रीमो हवा निकाल रहे थे ! चुनाव से पहले सारे सेटलमेंट किए जा रहे है !
इन गठजोड़ की कुछ कमी थी कि तीसरा भी बन गया , इसके रचयिता तो हमारे कम्युनिस्ट है इसमे भी सारा रोल प्रकाश करात जी महाराज का है वो इस समय बिल्कुल सारथी की तरह दिखाई पड़ रहे है ! वामदलों ने तो कांग्रेस से बदला लेने के लिए तीसरा मोर्चा गढा , परमाणु करार से जब समर्थन वापस लिया तो सोचा कि सरकार गिर जाएँगी लेकिन सरकार बच गई इसी का बदला वो अगले चुनाव में निकालने की कसक दिल में लिए हुए है इसीलिए जो किसी के साथ नही वो तीसरे के साथ है ! लेकिन अभी ड्रामा होना बाकी था BSP ने अपनी टांग अड़ा दी और कहा अगर माया PM तो हम तीसरे के साथ , वरना भूल जाओ लेकिन बाद में कहा गया कि छोड़ो मई के बाद फ़ैसला करेंगे कि कौन होगा PM !

साथियो में थोड़ा डर रहा हूँ कि अगर तीसरा मोर्चा बहुमत ले आया तो PM पद के लिए कितना घमासान हो जायेगा ,कंही बहुमत के बाद भी सरकार बन पाएँगी या कहीं ऐसा तो नही होंगा कि १ साल के लिए चंद्र बाबु नायडू , २ साल के लिए माया बहन , १ साल प्रकाश करत और १ साल जयललिता या करुना निधि प्रधानमंत्री पद के लिए सेटलमेंट कर ले ! वैसे आईडिया अच्छा है वैसे एक बात है आजकल हर किसी को प्रधानमंत्री बनाने के शौक लगा है मैं भी सोचता हूँ प्रधानमंत्री बन जाऊं देखिये में ये सब इसीलिए कह रहा हूँ क्योंकि हर कोई दावा पेश कर रहा है कि वो बन सकता है फिर चाहे वो उसके लायक हो नही !

Friday, January 30, 2009


गाँधी
जी आज भी जिन्दा है , शायद भारतीय नोट पर, क्योंकि एक बात सच है हमारे देश के सारे लोग गाँधी जी को मानते है पर गाँधी जी की नही मानते !
दरअसल आज अगर गाँधी जिन्दा होते तो एक बार फिर मर जाते शायद अब हिंदुस्तान में हजारों नाथूराम गोडसे घूम रहे है जो गाँधी जी को रोज मारते है, हम भारतीय भी बड़े अजीब किस्म के प्राणी है , वैसे तो गाँधी वादी विचार को हर रोज ताक़ पर रख देते है लेकिन जब पैसे कमाने की बारी आती है तो झट से गाँधी नाम के ब्रांड को बाज़ार में उतार देते है क्यो ?

Thursday, January 29, 2009

रेल की आवाज और कशमकश की जिन्दगी

रे का नाम आते ही हमारे जहन में यात्रा का ख्याल सबसे पहले आता है , स्टेशन पर आती हुई तेजी से इसकी आवाज अचानक हमारा ध्यान खींच लेती है ! सभी लोग तेजी से आती हुई और जाती ट्रेन की खिड़कियों में झांकने की कोशिश करने लगते है, ट्रेन के अन्दर की जिन्दगी भी बड़ी अजीब होती है ! अक्सर यात्रा के दौरान नए नए और अलग किस्म के और मूड के लोग मिलते है मेरा तो मानना है की इस देश की ट्रेन में आप बैठकर बहुत बड़े कहानीकार बन सकते है क्योंकि हर तरह लोगो की अलग अलग कहानी होती है और अलग विचार होते है !

कोई तो इतने गंभीर होते है की अपने चेहरे पर अजीब सी भावभंगीमाये बनाते है कि सामने वाला बात करने की इच्छा रखता होगा तो चाह कर भी ना कर पाए तो कोई इतने ज्यादा गंभीर बनने की कोशिश करते है कि अपने मन को मार कर बात नही कर पाते , पर बात करना चाहते है ! कुछ ऐसे होते जो अचानक बात शुरू कर देते है इनकी बातों की शुरुआत कुछ कुछ समस्या से होंगी और फिर वो जो शुरू होते है तो रुकने का नाम नही लेते और तो कोई उन्हें अपने जैसा आदमी मिल गया जो उनकी हाँ में हाँ मिला रहा हो, फिर देखिये उनकी बातो में मायावती की कुर्सी और दिल्ली की सरकार गिरते गिरते बच जाती है ! इसी में कुछ उस टाइप के लोग होते है जो बहुत बहुत जोर जोर से बोलते है और बातें करके अपने सारे राज अगल बगल वाले लोगो को बता देते है और वहां बैठे लोग उनका नाम उनके बच्चो की क्लास , सेलरी और ऑफिस सब कुछ जान जाते है ! कई बार भूख लगने पर किसी और खाना खाते देख बड़ी भूख लगने लगती है आप लोगों का तो पता नही पर मेरे साथ अक्सर ऐसा होता है फिर चाहे वो खाना मुझे घर में पसंद हो या हो ! अच्छा हाँ इसमें दिल भी बड़े मिलते है सच्ची , कोई लड़का लड़की सामने बैठे होतो आँखों ही आँखों में सब कुछ हो जाता है !

अगर आपके पास रिज़र्व सीट है तो आपके मजे है कभी कभी मजे भी चकना चूर हो जाते है जब आपकी सीट पर कोई बैठा होता है तो आप बड़े गर्व से कहते है सीट हमारी है और जब वो चला जाता है बड़े गर्व से फूल जाते है जैसे रेलवे आप ने खरीद ली हो ! कुछ तो इस टाइप के केरेक्टर आते है जो केवल सोने ही उनका लक्ष्य है अपने साथ हवा से फूलने वाला तकिया लेकर आते है और सबसे पहले ऊपर की सीट देखते है जिसमे सोने को मिल जाए ! अच्छा कभी आपका ट्रेन के टॉयलेट में जाना हो, तो आपका तरह तरह का साहित्य पढने को मिलेंगा उसका उद्गम कहाँ से हुआ, कब हुआ पता नही पर वो इतिहास बन जाता है कहने का मतलब है रेलवे टॉयलेट साहित्य के मामले में बहुत रिच है ! कभी किसी नवजात शिशु का रोना और किसी बूढ़े की खांसी की खुल खुल सब कुछ होता है यहाँ ! रेलगाड़ी का किसी अनजान स्टेशन पर रुकना कोतुहल करता है यहाँ कौन रहता है यहाँ की भाषा कैसी होंगी ! रात के अंधेरे में दूर से दिखाई देती बल्ब की रौशनी या फिर कोई घर, जहाँ सन्नाटा पसरा हुआ हो !


दोस्तों एक वर्ग और भी है जो रेल सफर करता है भिखारियों का ! जी हाँ कई बार अचानक आपके पैरो के नीचे कोई बच्चा अपनी शर्ट से रेल के फर्श को साफ करता हुआ देखा होगा ! कई लोग उस पर तरस खाकर उसे पैसे देते है ! अभी किसी ने उससे पूछा की तू किधर रहता है तेरे माँ बाप के साथ क्या हुआ मुझे तो लगता है शायद उसे ख़ुद नही पता होता होंगा की वो कौन से गाड़ी में बैठा है उसे तो उसके आकायो ने बता दिया है इसमे बैठ जा और शाम को इस गाड़ी में आजा ! अगर ऐसा है तो फिर ये किसी भी ट्रेन में बैठकर भाग क्यों नही जाते, शायद इसीलिए क्योंकि शायद उस समय इनपर कोई नजर रखे रहता है

सवाल ये है की एक और जिन्दगी है जो रेल में सफर करती है पर हम इस पर ज्यादा ध्यान नही देते हजारों लाखो लोग ट्रेने में बैठे हुए है अपनी ख़ुद की कहानी गड़ते है!

: दिल्ली के मित्र विकास द्वारा कहे जाने पर ये लेख लिखा गया है !

Monday, January 26, 2009

ऐ मेरे गणतंत्र तुम अब बूढे हो गए हो !

मेरे भारत के गणतंत्र अब आप अपने उम्र के साठवे वर्ष में कदम रख चुके है और अब और भी बूढा हो चले हो ! ऐसा गणतंत्र जो अबतक ना जाने कितने बसंत देख चुका है बहुत कुछ भुगत चुके हो ! ना जाने कितने आए और कितने गए और ना जाने कितने आपके सामने बड़े हुए और ना जाने कितनो ने आपको आंखे दिखाई ! आजकल मेरे गणतंत्र आपको कम दिखाई देता है अरे भाई हाँ थोड़ा झुककर भी चलते हो , कुछ लोग है जो इसी मजबूरी का फायदा उठाकर आपका हाथ पकड़ कर चाहे जहाँ ले जाते है जिधर चाहे बैठा देते है और आप भी चुपचाप बैठ जाते हो ! अब आपकी सुनने वाला कोई नही जिसका मन किया आपको गालियाँ दी पर कहीं फायदे की बात आनेपर आपको पुचकारा भी !


सच पूंछा जाये दोस्तों तो आजकल दादाजी (गणतंत्र ) की घर में चलती नही है ! और ना ही किसी को इनका डर रह गया है कुछ बच्चे इतने बिगड़ गए की आपके हाथ से निकल गए फिर चाहे वोह रामलिंगा हो या औरैया का विधायक या फिर तेलगी , कहीं मेरठ के पार्को में बैठे लड़के लड़किया हो या फिर पब में लड़कियों की पिटाई या फिर वो हो रक्षा सौदों में दलाली का मामला या फिर सैनिको के ताबूतों का मामला , तुम चुपचाप क्यों रह गए बताओ ? , तुमने तो आँगन में खटिया लगा ली और बैठ गए धूप सेकने , जरा घर में घुस कर देखा की की परिवार में चल क्या रहा है ! तुम्हे सच बताऊँ अब तुम्हारा नाम रह गया है तुम्हारा स्ट्रक्चर अब बस किताबों में रह गया है !


तुम्हे पता है इस देश में घोटालों करने वाले एक भी नेता को सजा नही होती बस ज्यादा से ज्यादा इस्तीफा या फिर पार्टी निष्कासन होता है तुम्हे पता है इस देश में लड़का लड़की एक पार्क में नही बैठ सकते है ! और भी बहुत चीजे है दादा जी अब तुम्हे क्या क्या बताऊ मैं नही चाहता आप हार्ट अटैक से मर जाए ! बस यहीं कहना है की इस देश में प्रधानमंत्री बनना इज्जत का सवाल हो जाता है , यहाँ अब सरकार बचाने के लिए फिक्सिंग की जाती है और बाद में स्टिंग ऑपरेशन करके कीचड़ उछाली जाती है ! अब देश में बच्चे की भूख की चिंता से ज्यादा चंद्रयान की चिंता की जाती है ! अब रहने दो क्या फायदा जो मैं बोलूँ , तुम तो शर्माने लगे हो बस यहीं कहूँगा कि आजकल मुझे दूसरे राज्य में जाने से डर लगता है पता नही कौन मुझपर हमला बोल दे ! तुम्हे ये भी बताऊँ अब मैं किसी भीड़-भाड़ वाले इलाके में नही जाता ना जाने कहाँ बम फट जाये होटल में भी खाने नही जाता हूँ इसीलिए आजकल अपने घर पर खाता हूँ ! पर अब तो घर में भी खाने के लिए कुछ नही बचा, मेरा सारा पैसा मंदी और शेयर बाज़ार डकार गए बाकी अनाज है उसे भी सरकार निर्यात दूसरे देशों को कर देती है जिससे देश में पैसा आए !


पर दद्दा सच्ची अब तो घर भी नही हैं , ये जो कोसी नदी थी न , इसका सरकार ने चेतावनी के बावजूद कुछ किया ही नही ! हम जैसे 32 लाख लोग इसकी शिकार हुए ! इस साल मैंने पूरी सर्दी टेंट में निकाली है एक लोकल नेता आया था मुझे एक शर्ट में देखा तो शाल में दे गया बस आजकल उसी का सहारा हैं ! दादा मुझे तुम्हारी याद आती है तुमने पैदा होते समय तो नेहरू ,पटेल और अम्बेडकर से बड़ी बातें की थी कि अब मैं ये करूंगा , वो करूंगा ! पर तुम भी झूठे निकले, क्या इस देश में मेरा कोई नही ! तुम्हे पता है एक बड़े कवि ने कहा था कि सबसे खतरनाक होता है सपनो का मर जाना , और अब मेरे सपने दम तोड़ने लगे है ! अब तो बस मैं यहीं चाहता हूँ कि जिस दिन तुम पूरी तरह मर जाओंगे उसके बाद फिर कभी इस धरती पर जनम मत लेना क्योंकि फिर किसी नए गणतंत्र का यहीं हाल होगा !

Tuesday, January 20, 2009

क्या आज इस दुनिया में कुछ अलग हुआ है !

जी हाँ लीजिये जिसका सबको बेसब्री से इंतजार था वो हो चुका है जिसको जो पाना था उसे वो मिल गया है क्या आज कोई कह सकता है की 35 या 40 साल पहले जो अमेरिका में गुलाम हुआ करते थे ॥ .... आज दुनिया उसके इशारे पर चलेंगी ! क्या आज किसी को शक है कि इस दुनिया में कुछ असंभव नाम की चीज है अगर है भी तो आज वो इस पल को देख रहा होगा जब ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बन चुके है सच कहता हूँ अगर आज महात्मा गाँधी जी होते तो उनकी आँखों में से भी अश्रु धारा बह निकलती क्योंकि दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी को ट्रेन के फर्स्ट क्लास डिब्बे से सिर्फ़ इसीलिए निकाल कर फेक दिया था क्योंकि वो एक काले थे ! दोस्तों सच्ची कह रहा हूँ ये घटना अचानक याद आने से मेरे अन्दर अचानक बिजली दौड़ गई है कि उस समय मोहन दास की क्या मानसिक स्थिति क्या रही होंगी , क्या वो इस घटना से अन्दर तक हिल गए होंगे या शायद उन्हें काफी देर तक ये समझने में लग गया आखिर उनका कुसूर क्या था ? या फिर वो चाहते तो अपना गुस्सा दिखा सकते थे पर शायद नही...उन्होंने उस गुस्से को ऐसे जाया नही जाने दिया उन्होंने उसे मुरब्बा बना लिया और कसम खायी कि आज तो तुमने मुझे इस ट्रेन से निकाला है पर याद रखना अगले 40 और 50 साल तुम पर भारी पड़ेंगे और मैं ख़ुद तुम्हे अपने देश से बाहर निकालूँगा !
क्या ओबामा कि जीत वाकई में गाँधी , मार्टीन लूथर किंग और उन तमाम लोगो कि जीत है जो सोचते है कि हाँ आज उन्होंने कुछ पाया है या फिर हाँ आज कुछ नया इस दुनिया में हुआ है ! चलिए वो तो आने वाला वक्त बतायेगा !

Tuesday, January 13, 2009

बुश का भारत प्रेम !

न्यूज चैनल देश रहा था, जिसमे एक रिपोर्ट दिखाई जा रही थी रिपोर्ट थी बुश पर , जो अपना कार्यकाल समाप्त करने जा रहे है , और उसमे बुश एक प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे ! बुश का कहना था की अभी हाल के सालों में अमेरिका की साक जरूर ख़राब हुई है लेकिन आज भी लोग उन्हें पसंद करते है , अगर आप अफ्रीका जाए या आप भारत जाए तो वहाँ के लोगो से मेरे बारे में पूंछे आपको अच्छी बात सुनने को मिलेंगी !

दरअसल ये बात कहकर शायद अपने दिल को समझा रहे थे और जाते जाते कुछ गलतिया भी स्वीकारना चाह रहे थे ! 9/11 के बाद जिस तरह से पूरी दुनिया ने करवट ली तो इस दुनिया का भूगोल ही बदल गया ! भयावह आतंकवाद का भूत जो केवल भारत जैसे देश के लिए नासूर बना हुआ था वो अपनी बोतल से निकल कर पूरी दुनिया पर छाने लगा , फिर चाहे वो अमेरिका हो ,ब्रिटेन हो या मेड्रिड में हुए बम धमाके, सभी जगह ये देखा जाने लगा की जो भारत इतने सालों से चीख-चीख कर अपनी बात दुनिया को बता रहा था , वो सही थी !

दरअसल सच बात तो ये है की अमेरिका द्वारा छेड़ी गई लडाई का कोई हल नही निकला , बल्कि उसने अपने हजारों करोडो डॉलर और बहुत सारे सैनिको को जरूर गंवाया ! आज भी अफगानिस्तान और इराक में एक दिन भी ऐसा नही जाता है जिसमे रोज एक अमेरिकी ना मारा जाता हो , बल्कि अब तो अमेरिका चाहकर भी अपना हाथ इराक और अफगान से नही निकल पा रहा है !

अब अगर बुश ये कहना की भारतीय लोग उन्हें पसंद करते है तो क्या सच है ? , क्या भारत की जनता सचमुच बुश के बारे में अच्छा सोचती है ! मुझे तो नही लगता , बुश आंशिक रूप से ही भारत के लिए अच्छे हुए, वो भी बस न्यूक डील को लेकर , वरना बुश ने हम गरीब भारतीयों को दिया क्या है ? बेवजह आर्थिकमंदी के , युध्द के , महंगाई के ! आपको याद होगा पेट्रोल और डीजल के दाम इराक युध्द की वजह से ही असमान छूने लगे थे ! दो देशो पर युध्द करने वाला अमेरिका भारत को शान्ति का पाठ पढ़ाता है ! लेकिन उसका इसमें ख़ुद निजी स्वार्थ छिपा हुआ है अगर भारत, पाक पर जंग छेड़ता है तो पाक अपनी फौजों को अफगानिस्तान से हटा लेगा जो अमेरिका नही चाहता है !

जबकि बात रही न्यूक डील की तो उसमे वो एशिया में चीन से कड़ी टक्कर लेने के लिए भारत को आगे लाना है, क्योंकि अमेरिका जनता है की एशिया का ये ड्रेगन बहुत ऊँची उड़ान भर रहा है और इसकी गति केवल बाघ ही रोक सकता है ! इसीलिए अमेरिका और चीन के बीच में भारत कहीं बीच का बन्दर न बनकर रह जाए इसके लिए भारत सरकार को अपनी विदेश नीति के आवश्यक बदलाव करने होंगे , हाँ ये बात सहीं है कि अगर हमें 2025 तक कुछ बनना भी है तो 3 दुनिया के देशो जैसा व्यवहार करना बंद करे !
इस भीड़ मे आजकल कौन सुनता है !

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