Wednesday, December 10, 2008

ओबामा ओबामा ओबामा

बामा ओबामा , अरे बस करो यार अब , जब देखो हर किसी के मुहँ से यंही नाम सुनने को मिल रहा है ! जैसे ओबामा नही हुए कलयुग में विष्णु के अवतार ने जन्म ले लिया हो जैसे वो अब पूरी दुनिया में शान्ति लायेंगे , दुष्टों का संहार करेंगे और पूरी दुनिया को गरीबी (आर्थिक मंदी) से बचायेंगे ! कम से कम हमारे भारतीय तो उसे देवता का अवतार समझने लगे है ! अगर कोई विदेशी हनुमान की मूर्ती हमेशा अपने पास रखे और गाँधी जी तस्वीर अपने ऑफिस में रखे तो इस पर भारतीयों को उसमे विशेष रूचि होंगी मुझे तो लगता है की इतनी खुशी तो हमें अपने शहर के सांसद के चुनने पर भी नही होती है जितने उसके अमेरिका के राष्ट्रपति बनने पर हुई ये तो वो वाली बात हो गई, बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना !

और वैसे भी आखिर इस ओबामा ने क्या कर दिया है जो सभी लोग इसके पीछे पगलाये हुए है अरे भाई अभी तक उसने बस हमारे नेताओ की तरह बोल वचन ही तो फेकें है जब उस पर अमल होगा तब की तब देखी जायेंगी ! ना जाने कितने ढेरो लेख पढ़े मैंने ओबामा को जानने के लिए लेकिन मुझे तो अभी तक कोई ऐसी बात उसमे नही दिखी सिवाय उनके प्रभावशाली भाषण के ! हमारे भारतीय लेखको ने अखबार रंग दिए, ओबामा के लिए खूब कसीदे पड़े जैसे " भारतीयों को भी एक ओबामा की तलाश " या "भारतीय ओबामा की तलाश " !

और वैसे अब मुझे इन अमेरिकियों से चिड होने लगी है, कि इनको इनका ओबामा मिल गया, साला हमें कब अपना ओबामा मिलेंगा ! पहले बात तो मित्रों ये की अगर हमें अगर भारतीय ओबामा चाहिए तो सबसे पहले ये जितने भी प्राचीन काल के बुढ्डे ठुड्डे ओबामा है इनसे मुक्ति पानी होगी क्यूंकि ये 75 और 80 साल की उम्र हरिमाला जपने की होती है राजनीती की नही, और फिर यह ऊपर जाकर भगवान् को क्या जवाब देंगे की क्यों हमने हरी का नाम एक बार भी नही लिया क्यूँकी हम राजनीती में थे ! इनको हटाने की एक वजह और भी है वो यह की यह देश अब युवायो का है इसीलिए नेता भी अब युवा चाहिए, वो नही जिसके साइन करते टाइम हाथ कपकपाते हो ...इसीलिए युवा नेता हमारे देश की युवायो के विचारों को अच्छी तरह से जानने वाला होगा क्योंकि वो हमारी सदी में पैदा हुआ है इसीलिए आज के हालत से अच्छी तरह वाकिफ है आज की भाषा आज के नियम सब कुछ चेंज हो चुका है तो आज का नेता इससे ज्यादा अच्छी तरह से पहचान सकता है और समाज की क्या डिमांड है उसे महसूस कर सकता है ! वो देश के लिए तार्किक मुद्दे ला सकता हैं जो बस देश के अच्छे भविष्य के लिए हो ना की किसी पार्टी विशेष को नीचा दिखने के लिए (हमारे नेता मुद्दों से दूसरी पार्टियों को घेरते है ) ! और वो भाषण भी ऐसा दे जिससे समाज के अन्दर करंट दौड़ जाए, वैसे नही जैसे हमारे नेता भी देते है जो सन 1947 से बातें शुरू करते है और 1975 के आपातकाल के किस्से सुनाते है तथा पुरानी सरकार से अपनी सरकार की तुलना करते रहते है ! बल्कि अब तो हमें अपने देश की, किसी अच्छे और विकसित देश से तुलना करे !

काश ऐसा नेता मिल जाए रे ," पता नही कैसा दिखता होगा वो कहाँ होगा वो " वैसे तो ऐसे शब्द किसी शादी लायक लड़की के सपने जैसे होते है , पर आज ये पूरे भारत के शब्द है कि किधर है वो ! आज की राजनीती को देखकर निकाह फ़िल्म में सलमा आगा का गीत की लाइन याद आ गई की " शायद उनका आखिरी हो ये सितम, हर सितम ये सोच कर सहते रहे "

अब आजा कहाँ छुपा है तू मेरे ओबामा

Wednesday, December 3, 2008

दो निशानेबाजों की कहानी !

इस लेख की प्रेरणा मुझे मेंरे मित्र से चर्चा की दौरान मिली जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि निशानेबाजों में भी फर्क होता है !
दरअसल दो निशानेबाज जिनमे से एक ने अपने देश का नाम ऊँचा किया तो दूसरे ने अपने माँ बाप का नाम ऊँचा किया ! फिर भी दोनों के काम में बहुत बड़ा अन्तर था !

पहला निशानेबाज जिसने ओलिम्पिक्स में भारत के लिए पहला व्यक्तिगत गोल्ड मैडल जीता , और पूरे देश को गौरवान्वित होने का मौका दिया और पूरे देश ने उसे पलकों में बिछा लिया , हमारे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने उस निशानेबाज को फ़ोन कर बधाई दी बल्कि उनसे और उसके परिवार से भी मिले बाकायदा सभी का वीआईपी जैसा स्वागत हुआ , और तो और सारे राज्य उसपर वारें जा रहे थे कोई देता उसे 5 लाख तो कोई 10 लाख कुल मिलकर पुरस्कारों की कीमत पहुँची ३ करोड़ तक साथ ही विज्ञापन मिले अलग से !

हमारा दूसरा निशानेबाज एक कमांडो है उसने भी देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया वो भी अपने देश लिए जान पर खेलकर लाया आजादी ! एक ऐसी आजादी जिसमे भारत के लोगो को दिया हौंसला और दी एक ऐसी आशा जिसमे किसी के सपने ना मर सके ! उसे भी पुरस्कार मिला वो भी 5 लाख का ! उसके पास किसी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का फ़ोन नही आया और ना ही उसके परिवार से कोई मिला और जो मिलने भी गया उससे भी उसे मिली गाली !

क्या इस देश में स्वर्ण पदक की कीमत 3 करोड़ है जबकि जान की कीमत के लगते है सिर्फ़ 5 लाख ? क्या इस देश में स्वर्णपदक अब देशभक्ति से ज्यादा मायने रखने लगा है ? क्या यह ये वहीं देश है जिसमे भगत सिंह ने अपनी जान सिर्फ़ इसलिए दी की उनसे प्रेरणा लेकर हजारों भगत सिंह पैदा हो सके और अपने देश पर मर मिटें !

पर क्या अब कोई माँ-बाप अपने बच्चे को आर्मी या देश के लिए मर मिटने को कहेगा ? जिस देश में देशभक्तों का ऐसा सम्मान होता है , जिस देश में सरकार बचाने के लिए सभी दलों के लिए रात्रि भोज का आयोजन किया जाता है परन्तु जवानों के लिए ढंग के बुलेटप्रूफ जैकेट नही मिलते ! जवानों के ताबूतों पर घूस खाई जाती है ! नही शायद अब नही कोई कहेंगा की बेटा जाओ और देश की रक्षा करो !

पर जाते जाते एक बात की अभिनव और संदीप, इन दोनों की निशानेबाजी में एक बहुत बड़ा अन्तर ये था कि संदीप जिस चीज को निशाना लगा रहे थे उन्हें पलटकर गोलिया का जवाब भी मिल रहा था परन्तु अभिनव के साथ ऐसा कुछ नही था !

Tuesday, December 2, 2008

प्रसून जोशी की बेहतरीन कविता इस बार नहीं !

इस बार नहीं

इस बार जब वह छोटी सी बच्ची
मेरे पास अपनी खरोंच लेकर आएगी
मैं उसे फू-फू करके नहीं बहलाऊंगा
पनपने दूंगा उसकी टीस को
इस बार नहीं

इस बार जब मैं चेहरों पर दर्द लिखूंगा
नहीं गाऊंगा गीत पीड़ा भुला देने वाले
दर्द को रिसने दूंगा
उतरने दूंगा गहरे
इस बार नहीं

इस बार मैं ना मरहम लगाऊंगा
ना ही उठाऊंगा रुई के फाहे
और ना ही कहूंगा कि तुम आंखे बंद करलो,
गर्दन उधर कर लो मैं दवा लगाता हूं
देखने दूंगा सबको
हम सबको
खुले नंगे घाव
इस बार नहीं

इस बार जब उलझनें देखूंगा,
छटपटाहट देखूंगा
नहीं दौड़ूंगा उलझी डोर लपेटने
उलझने दूंगा जब तक उलझ सके
इस बार नहीं

इस बार कर्म का हवाला दे कर नहीं उठाऊंगा औज़ार
नहीं करूंगा फिर से एक नई शुरुआत
नहीं बनूंगा मिसाल एक कर्मयोगी की
नहीं आने दूंगा ज़िंदगी को आसानी से पटरी पर
उतरने दूंगा उसे कीचड़ में, टेढ़े-मेढ़े रास्तों पे
नहीं सूखने दूंगा दीवारों पर लगा खून
हल्का नहीं पड़ने दूंगा उसका रंग
इस बार नहीं बनने दूंगा उसे इतना लाचार
की पान की पीक और खून का फ़र्क ही ख़त्म हो जाए
इस बार नहीं

इस बार घावों को देखना है
गौर से
थोड़ा लंबे वक्त तक
कुछ फ़ैसले
और उसके बाद हौसले
कहीं तो शुरुआत करनी ही होगी
इस बार यही तय किया है
-- :
प्रसून जोशी

Sunday, November 30, 2008

हद की भी हद पार हो गई !

आज यह लेख मैं बहुत ही रोते हुए झुंझलाते हुए और गुस्से में लिख रहा हूँ क्यों ? क्यूँकी मेरे सामने एक मां अपने बच्चे के पार्थिव शरीर के सामने उसकी आँखों में देखकर बातें कर रही है की उठ जा मेरे लाल ! जी हाँ ये कोई नही हमारे एन.एस.जी के कमांडो संदीप जो की ३१ साल के थे ताज होटल मुंबई में आतंकवादी मुठभेड़ में शहीद हो गए!

भारतीय होने के नाते अपने देश की हालत को देखकर समझ नही आ रहा है की ये वो ही देश है जहाँ दूध की नदिया बहा करती थी और आज खून की नदिया बहती है ! मुंबई में जो कुछ भी हुआ बहुत शर्मनाक है ! क्या हम अपने घर के अन्दर ऐसे ही मरते रहेंगे ?, क्या भारत , आतंकियों के लिए खाला का घर बन गया है कि जब चाहे कोई आए और हमें ठोक बजाकर चला जाये ?, क्या हमारे देश का लोकतंत्र बेकार है ? , क्या हमारे खुफिया तंत्र बेकार है ? या फिर हमारी अब जिन्दगी इतनी सस्ती हो गई है कि अब ज्यादा फर्क नही पड़ता क्योकि १२० करोड़ लोगो में से अगर २०० या ३०० मर जाये तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा यार !

एक पत्रकार उन पुलिस वालों से बात कर रहा था जिन्होंने पुलिस की गाड़ी चुराने वाले आतंकियों को मार गिराया उनका कहना था की आतंकी के पास Ak47 थी जबकि हमने अपनी सर्विस रिवोल्वर से मार गिराया ! बेशक ये उन जवानों के लिए गर्व की बात है लेकिन हमारे लिए और सरकार के लिए शर्म से डूब मरने वाली बात है की Ak47 का सामना रिवोल्वर से करना पड़ रहा है ! मैंने तो उन सिपाहीयो के पास ऐसी बंदूको को देखा जो लम्बी लम्बी पुराने ज़माने की ३० या ४० साल पहले देखी जाती थी क्या हमारे जवानों की अब कोई कीमत रह भी गई है ?

कोई जवान या कोई पुलिस वाला शहीद नही होना चाहता लेकिन जब सरकार का आदेश आता है तो जाना पड़ता है नौकरी निभाने ! उन्हें भी याद आते है अपने बच्चे अपने माँ बाप अपनी बीवी अपना परिवार , पर क्या करे अगर नही जायेंगे तो सब बुझदिल कहेंगे ! आखिर कब तक हम ऐसे अनमोल जवान खोते रहेंगे !

आपको पता है की NSG कमांडो में कोई दक्षिण से था तो कोई उत्तर से कोई मराठी था तो कोई बिहारी, पर सबने मिलकर मुंबई कोई आजाद कराया और मिसाल दी की अगर एक रहेंगे तब की देश को बचाया जा सकता है न की तोड़कर ! अब कहाँ गया वो राज ठाकरे और कहाँ गए उसके गुण्डे , उसे किसी ने बताया नही की कुछ उत्तरभारतीय और बिहारी NSG कमांडो का रूप धरकर ताज होटल में घुस गए है उसकी मुंबई को बचा रहे है जल्दी से उन्हें मारने के लिए अपने गुण्डे भेजो कहाँ गया वो बाल ठाकरे का शेर उध्दव जो कुछ समय पहले दक्षिण भारतीयों को निशाना बनाते थे उसको बताओ की दक्षिण भारतीय जवान भी जवाबी कार्यवाही करते हुए शहीद हुआ ! और तो और मनसे के गुण्डे मुंबई में आये आतंकियों से क्यों नही लड़ने गए उन्हें तो बहुत शौक है न उन लोगो को मारने का...... जो लोग उनकी मुंबई में आते है ! जरा दे देती सरकार इनके साथ में गन और भेज देती जरा ताज में फिर इन्हे पता चलता !

क्यों हम लोग हर बार कीडे मकोडों की तरह कुछ लोगो के मरने के बाद थोड़ा दुखी होकर फिर से एक जैसे हो जाते है ? , वो इसीलिए क्योंकि यह अभी तक हमारे साथ नही हुआ है !
क्यों हर घटना के बाद सरकार जांच कमीशन बैठा देती है ?, शिवराज पाटिल के इस्तीफा देने से एक बात बिल्कुल साफ हो गई की सरकार हमें सुरक्षा देने समर्थ नही है इसीलिए इस चीज से मुहँ मोड़ ले वो ज्यादा अच्छा है !

अब बारी है जनता के सोचने की , कि अब जात-पात धर्म से ऊपर उठना पड़ेगा ! पूरे भारत में एक अलख जगाना पड़ेगा ! अब हम किसी सरकार के नीचे नही , बल्कि सरकार को अपने नीचे लाना पड़ेगा !
अब हमें अपने बॉर्डर्स सिक्योर करने पड़ेगे ! देश में शरणार्थी के आने पर रोक लगनी होगी ! पुलिस में भारी बदलाव करने की जरुरत है उन्हें अपडेट करने की भी जरुरत है तथा भारी मात्रा में पुलिस फोर्स की कमी से हमारा देश जूझ रहा है सयुक्त राष्ट्र के मानक के अनुसार २३१ लोगो पर एक पुलिस वाला होना जरुरी है परन्तु हमारे देश में यह आंकडा 731 पर एक पुलिस वाला है इसीलिए बहुत बड़ी तादाद में हमे फोर्स भरना पड़ेगा सिर्फ़ भरना ही नही सही ट्रेनिंग की जरुरत भी है !

खुफिया तंत्र को और ज्यादा सुद्रण बनाना पड़ेगा, एक संघीय शाखा का निर्माण अति आवश्यक है तथा हमारी जांच एजेंसिया को सरकार के प्रति जवाबदेह भी न होना पड़े और उनको स्वतंत्र काम करने की छूट दी जाए (कई देशो में ऐसी छूट दे रखी है !) और कड़े से कड़े कानून बनाये जाए और जाँच पूरी होने पर हाल की साल सजा भी दी जाए ! राज्यों के आपसी समन्वय और उनके बीच में सूचनाओ का आदान- प्रदान भी बहुत जरुरी है !

साथ ही साथ हमारे देश के नागरिक भी सजग रहे हमको भी एक पुलिस वाले जैसा काम करना पड़ेगा बस वर्दी ही तो नही होगी ! ये देश हमारा है तो हमें ही इसकी रखवाली करना पड़ेगी न यार और कौन करेंगा ?
अपने
घर में आए चोर के साथ क्या करते है ... हम लोग ?

Monday, November 17, 2008

हाँ यहीं में अच्छे से कर सकता हूँ !

लक्ष्य फ़िल्म में हृतिक रोशन का चरित्र लक्ष्यविहीन लड़के का बताया गया जिसे दुनिया जहाँ की कोई फिक्र नही है ! वो बस खाता पीता है सोता है और दोस्तों के साथ मौजमस्ती और हँसी मजाक में दिन काट रहा होता है और कोई उससे उसके करियर के बारे में पूछता है तो सभी को दुश्मन समझता है ! अपने दोस्तों से वो ख़ुद पूंछता है कि ये माँ बाप हमेशा एक ही बात क्यो पूंछते है कि क्या करने वाले हो क्या करोंगे ये इन लोगो के पास कोई टॉपिक नही है क्या ?

दरअसल यह समस्या आजकल ज्यादातर युवाओं की है !वो इसी उपह्पोह में फंसे रहते है कि ऐसा कौन सा काम है जो मैं सबसे अच्छे से कर सकता हूँ ! कम से कम स्नातक के शुरूआती सालों में तो युवा सोचते ही है कि मैं आगे जाकर क्या करूंगा ! पर ये अलग है कुछ लोग अपना लक्ष्य बनाकर चलते है और उन्हें क्या करना है उन्हें पता होता है ! लेकिन जिनको नही पता होता है वो हमेशा तनाव में जीते है !

इसके कारण हमारे आसपास के प्राणी लोग है जो बार-बार भविष्य की योजना को लेकर बात करते है और तो और सुझाव भी चिपका देते है ! माँ-बाप के कान भी भरते है कि अरे इसे ये कोर्स कराओ बहुत चल रहा है या फिर अरे इसमे कोई स्कोप नही है ग़लत फंस गए ! इन लोगो को ख़ुद कुछ पता नही होता दूसरों से सुनकर चले आते है !

लक्ष्य का निर्धारण कैसे होता है ये कैसा पता चलेगा ! शायद उसका पता तब चलेगा जब ख़ुद आपके दिल से आवाज आयेगी , हाँ यही वो काम है जो मैं अच्छे से कर सकता हूँ ! और इसके कई उदाहरण हमने देखे भी है जैसे कि कई लोगो को हमने बड़ी-बड़ी नौकरिया छोड़कर दूसरा काम करते देखा है ! कोई लेखक बन गया तो कोई पत्रकार या फिर किसी आई.पी.एस अधिकारी से कहते सुना हो कि मैं पत्रकार बनना चाहता था या किसी अभिनेत्री को यह कहते सुना है कि वो डॉक्टर बनना चाहती थी ! भेजा फ्राय फेम विनय पाठक आज सिनेमा में बहुत शोहरत कमा रहे है ! अमेरिका से एम्.बी.ए कर रहे विनय एकदिन नाटक देखने चले गए जहाँ उन्हें उसका इतना चस्का लगा कि एम् बी ए छोड़कर थियेटर के साथ जुड़ गए ! अब बताइए चाहते तो वो एम् बी ए करके लाखो रुपए कमा सकते थे पर उनके दिल ने कहा कि हाँ विनय यहीं काम है जो तू अच्छे से कर सकता है !

और महज लाखो करोड़ो पैसे मिलना ही इस बात का प्रमाण नही कि आप बहुत सुखी है और अपने माँ-बाप का सपना पूरा कर दिया , पर आपकी निजी खुशी भी बहुत जरुरी है आपको अच्छा लग रहा है या नही ! चाहे फिर ऑफिस में साइन करने का काम ही क्यो न हो या फिर लक्ष्य फ़िल्म में नायिका के पिता द्वारा ह्रितिक को कहना कि फिर तुम चाहे घाँस काटने वाले बनो... पर अच्छा तब कोई मतलब है !

Friday, November 14, 2008

ईरान-अमेरिका गतिरोध , भारत की भूमिका !

ईरान, भारत और अमेरिका विश्व की राजनीति में बहुत मायने रखते है साथ ही साथ ऐतिहासिक द्रष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है ! हाल के समय में तेहरान और वॉशिंगटन में एक दूसरे को प्रति बहुत गर्मी देखी गई ! अमेरिका की वहीं पुरानी चिंता परमाणु प्रसार की है जिसका आरोप लगाकर उसने इराक में लडाई लड़ी , पर उसके हाथ कुछ नही आया बल्कि उसने इराकियो को दिया जलता हुआ इराक !

ईरानी राष्ट्रपति अहमदीनेजाद के परमाणु परीक्षण करने से अमेरिका की आंखे लाल है ! दरअसल ईरान का मानना है कि वो अपनी सुरक्षा के साधन जुटा ले ताकि आगे जाकर कोई देश उसे धमकी न दे ! जबकि ईरान का ख़ुद किसी से युध्द करने का इरादा नही है !

इसके परिणाम में अमेरिका भयभीत है , उसका मानना है कि कहीं ईरान परमाणु संपन्न राष्ट्र बन गया तो इससे एशिया में शक्ति संतुलन बिगड़ सकता है ! परन्तु बात कुछ और है वह किसी भी देश को परमाणु तकनीक ईजाद करते हुए नही देखना चाहता है ! विश्व पटल पर अपनी बादशाहत को खोना नही चाहता है और न वो अपने से ज्यादा किसी को शक्तिशाली देखना चाहता !

इसके इतर बात करे तो ईरान और भारत राजनीतिक और ऐतिहासिक द्रष्टि से परम मित्र रहे है , हालाँकि अभी हाल के कुछ महीनो में थोडी बहुत गलतफहमिया हुई , जैसे परमाणु प्रसार पर , अमेरिका के कहने पर भारत का ईरान के खिलाफ सयुक्त राष्ट्र में वोट करना रहा हो या फिर भारत अमेरिका परमाणु संधि ! इन सबसे थोड़ा मन खट्टा तो हुआ है पर बात अभी इतनी भी नही बिगड़ी है ! इसी लिहाज से विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ईरान गए और कई मुद्दों पर आम सहमती बनी जहाँ तक कि उन्होंने कई मामलो पर सफाई दी होगीं !

ईरान प्राकृतिक गैस के लिहाज से भारत के लिए बहुत मायने रखता है इसीलिए भारत को चाहिए कि भारत पाक ईरान गैस पाइप लाइन पर जल्दी सहमती बने ! वरना गैस कि समस्या हमारे लिए विकराल बन सकती है ! सुनाने में आया है कि ईरान गैस पाइपलाइन मामले में जो कि सन 1995 से चल रहा है भारत के दुलमुल रवैये को देखकर पाइप का मुहँ चीन की तरफ़ मोड़ सकता है ! इसीलिए भारत अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति का सहारे लेकर ये मौका लपक ले वरना कुछ हाथ नही आएगा और मुर्गे करे मेहनत...और अंडा खाए फ़कीर वाली कहावत सार्थक होगी साथ ही एक परम मित्र की दोस्ती भी जा सकती है

Tuesday, November 11, 2008

नेताजी कहिन !

कहते है की गिरगिट रंग बदलता है परन्तु इसका इस्तेमाल वो अपनी सुरक्षा के लिए करता है ! वो जिस चीज पर बैठता है उस चीज का रंग ले लेता है ! हमारे राजनेता भी गिरगिट से कम नही है ! इनका असली रंग चुनाव के आने पर ही दिखता है ! इसका उपयोग वो कुर्सी पाने के लिए करते है और जिस पार्टी में जाते है उस पार्टी की विचारधारा में बोलने लगते है !

विधानसभा चुनाव होने वाले है ! और पार्टियों में टिकट को लेकर कई बवाल सामने आ रहे है ! दल बदले जा रहे है , विचार बदले जा रहे है , मुद्दे बदले जा रहे है ! जो नेता बहुत सालों तक एक पार्टी में था ! टिकट न मिलने से दूसरी पार्टी में चला गया , और टिकट पाया ! अभी तक जो नेता विरोधी खेमे पर गर्म भाप छोड़ रहे थे आज वहीं गर्मी टिकट पाकर शांत हो गई ! और अब वो गर्म भाप , छोडी गई पार्टी पर निकलती है !

जब नेता जी से पूछा जाता है कि आपने पार्टी क्यो छोड़ दी? और ये पकड़ी ? तो सभी का एक ही जवाब होता है कि यह पार्टी अच्छा काम कर रही है और इसकी विचारधारा पर मुझे विश्वास है, तो नेता जी आपको इतने सालों बाद इसकी विचारधारा पर विश्वास हुआ या टिकट का हथौडा आपके सर पर पड़ा तब आपके होश ठिकाने आयें !
अच्छा भाइयो ये सब बात नेता लोगो को भी पता होती है कि जनता सब जानती है और समझ रही है , हमे देख रही है पर क्या करे हमाम में सब नंगे होते है !

आज से कुछ साल पहले अरुण शौरी ने एक बात कहीं थी कि नेताओं को जनता के बीच में से ही चुनकर आए तो ज्यादा अच्छा होगा और इससे भ्रष्टाचार में कमी आएगी ! क्योकि अभी जनता के पास कोई विकल्प नही है वो केवल उन्ही को वोट देते है जिनको पार्टिया खड़ी करती है ! दूसरी बात यह जो मैंने ख़ुद सोची कि किसी आम आदमी(कर्मचारी) को पुलिस केस में पड़ने या बनने पर सरकारी महकमे से निष्काषित किया जा सकता है! या छात्रों का पुलिस केस होने पर नौकरी मिलने में परेशानी हो सकती है , उसी प्रकार से नेताओ को भी इस शर्त में बांधा जाए तथा अपराधिक तत्व वाले उम्मीदवार को चुनाव के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाए ! लेकिन बस इतने कहने से ही सबकी त्योरिया चढ़ जाएँगी वो इसीलिए सबसे ज्यादा चुनाव अपराधिक लोग लड़ते है !

मार्गरेट अलवा कहती है कि कांग्रेस के टिकट बिकते है ! सभी लोग अपने भाई भतीजो को टिकट दिलवाते है ! वो बस इसी बात को लेकर खफा थी कि उनके बेटे को टिकट क्यो नही दिया गया ! तभी उन्होंने पोल खोल दी ! परन्तु वो यह बात भूल रही गई कि जिस तरह वंशवाद कर आरोप लगा रही है असल में वो भी तो यहीं कर रही है !

पहले के महान नेता महात्मा गाँधी , नेहरू , शास्त्री जी और भी बहुत सारे इन सब लोगो कर इतिहास हम किताबों में पढ़ चुके है ! फिर क्या आज के नेताओ ने ऐसा कोई काम किया जो इनका इतिहास हमारी अगली नस्ल पढ़े !
वोः कहते है न.....यहीं हमारे देश कर दुर्भाग्य है !

Monday, November 10, 2008

भारत की तरक्की के मायने !

विन्दर्भ में किसान ने आत्महत्या की ! यह ख़बर आए दिन या यूँ कहे कि कई सालों से अखबारों के पन्नो पर स्याही का खर्चा बढ़ा रही है ! आखिरकार विन्दर्भ में किसानों को ही सबसे ज्यादा आत्महत्या क्यो करनी पड़ती है ! इसका कारण ...... अरे नही भाई अब इसका कारण भी उत्तर भारतीय नही है समझे , शायद वहाँ पर कम बारिश हो या कर्ज के बोझ तले इतना दब जाता है कि उसे म्रत्यु का वरन करने में भी संकोच नही होता !

खैर इसके इतर हम आजकल देख रहे होंगे कि भारत ने चंद्रयान सफलता पूर्वक भेजा जिसमे भारत को विज्ञानं कि द्रष्टि से बहुत फायदा होगा ! इस अन्तरिक्ष यान को बनने में सरकार का 450 करोड़ रुपए से ज्यादा का पैसा लगा है !
और भारत इसे सफलतापूर्वक भेजकर मन ही मन इतरा रहा है !

इसके इतर एक और चीज जो कि शायद सब चिल्ला रहे है कि इतिहास बन गया रे , जी हाँ आप सही समझे मैं भारत-अमेरिका परमाणु संधि की बात कर रहा हूँ ! जिससे हमारी सरकार ने अपने लिए इज्जत का सवाल बनाने लिया था की अब चाहे कुछ भी हो जाए ये डील होकर रहेंगी ! और सभी पार्टियों को अपना दुश्मन ! ये करार तक़रीबन 2 लाख करोड़ रुपए का हुआ जो की एक बहुत बड़ी रकम है ! ये करार भी ऐसे देश के लिए हुआ जिसमे परमाणु उर्जा का अभी फिलहाल कोई भविष्य नही है !

आर्थिकमंदी से सारे देश प्रभावित है फिर चाहे वो दूसरी दुनिया से हो या तीसरी दुनिया से ! ऐसे में हमारे देश में उसका असर सबसे पहले एयरलाइन्स पर दिखने लगा है ऐसे में सरकार से उसके लिए 4500 करोड़ रुपए का बेलआउट पैकेज उसको घाटे से उबारने के लिए मांग की जा रही है !

सरकार कहती है हमारे यहाँ अनाज की कमी नही है और इस बार हम पहले से ज्यादा दूसरे देशो को अनाज निर्यात कर पाएंगे !
क्या ऐसे देश में अनाज निर्यात जरुरी है ? जबकि देश में हजारों लाखों लोग भूखे सोते है !
क्या ऐसे देश में चंद्रयान सफल होने के कोई मायने है ? जबकि देश के किसान आत्महत्या कर रहे है !
हमारे देश में सन् 2010 में कॉमनवेल्थ खेल होने वाले है और उसमे पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है ! परन्तु उत्तरप्रदेश के दलित गाँव में चूहों को मारकर उन्हें पकाकर खाते है क्यो ? क्योकि उन लोगो के पास अनाज के लिए पैसे नही है !

राजठाकरे भले ही यूपी बिहार के लोगो को मरकर भगाते हो पर क्या कभी उन्होंने विन्दर्भ में जाकर वहां के किसानो के लिए कुछ काम किया ?
आम जनता को कुछ लोगो(उन्हें क्या मतलब की मुकेश अम्बानी ने कितना पैसा बढ़ा लिया है ) की तरक्की से कोई मतलब नही है उन्हें मतलब है तो बस अपनी सुबह शाम की रोटी से ! मिशन चंद्रयान तभी सही मामलो में सार्थक होगा !

Monday, November 3, 2008

आज कल मेरी उससे नही बनती ..... .

किसी शहर में एकदम अकाल पड़ा हुआ था सब जगह त्राहि -त्राहि मची हुई थी , सारी फसल सुख गई थी और पानी तो बिल्कुल नही , सभी लोग दहशत में आ गए ! की अब क्या होगा तभी बुजुर्गो ने सुझाया की हमे पहाड़ी पर रहने वाले दरवेश के पास जाना चाहिए... वो बहुत पवित्र आत्मा है !

सभी लोग इकठ्ठे होकर उनके पास गए और उनसे मिन्नतें की... कि आप खुदा से दरख्वास्त करे कि वो पानी बरसाये ! उस समय दरवेश अपने कपड़े धोकर सुखने के लिए डाल ही रहे थे ! दरवेश ने कहा कि मुझे माफ़ करो भाई मैं तुम्हरी कोई भी मदद नही कर सकता क्योकि मेरी आजकल खुदा से बनती नही ! इतना कहना ही था कि बाहर जोरदार बारिश होने लगी ! लोग बाहर देखते हुए आश्चर्य करने लगे इससे पहले वो दरवेश का शुक्रिया अदा कर पाते दरवेश तुनक कर बोले देखा मैंने कहा था न कि मेरी आजकल उससे बनती नही अब वो ये भी नही चाहता कि मैं अपने कपड़े सुखा सकूँ !

और भी
तू इतनी जल्दी डर गया

एक बहुत बड़े सूफी ने खुदा में जो ऐसा मन रमाया... कि फिर कई दिनों तक न टूटा ..फिर एक दिन जब वो उठे तो सीधे अपनी घर कि तरफ़ लौटे ! तो देखते क्या है कि घर खाने के लाले पड़े हुए है एक अनाज का दाना नही है घर में अपने लोगो कि इस लाचारी की हालत को देखकर वो बहुत दुखी हुए और सीधे मस्जिद की ओर रुख किया !

फिर वहां जाकर उन्होंने हाथ में कागज और कलम को लेकर दोनों हाथ असमान में उठाये और जोर से कहा कि तू इतना पत्थर दिल है तू मेरे लोगो को खाना नही दे सकता ...क्या तू दिवालिया हो गया है ह्ह्ह ...और अगर ऐसा है तो ये ले कागज और कलम और दस्तखत कर इस पर और हो जा अपना जिम्मेदारियों से आजाद जा !

वहां बहुत भीड़ जमा हो गई और उसी भीड़ में से एक ने कहा लो भाई तूम ये अनाज का बोरा और जाकर अपने घर के लोगो को खाना खिलाओ ! ये देखकर सूफी फिर ऊपर की ओर देखकर बोला देखा कितनी जल्दी डर गया तू एक आवाज में ही अनाज का बोरा भेज दिया !

सौजन्य :रसरंग ( दैनिक भास्कर)

Saturday, November 1, 2008

मेरी भाषा हिन्दी है तेरी क्या है .....

आजकल पूरे देश में भाषाई राजनीती का चलन बहुत बढ गया है ! हर व्यक्ति अपनी भाषा दूसरे पर थोपने लगा है ! यह लेख इसीलिए लिखा जा रहा है , क्योकी हाल ही के दिनों में पूरे भारतवर्ष में भाषाई मामले टूल पकड़ रहे है ! एक तरफ़ महाराष्ट्र में जहाँ मराठी में कामकाज बोलचाल की भाषा के स्वर उग्र हुए , वही दूसरी ओर कर्नाटक सरकार ने साइन बोर्ड कन्नड़ में लगना अनिवार्य कर दिया है !

बात अगर यहाँ तक रहती है तो शायद ठीक हो क्योकि हम सभी जानते है कि भारत में अनेक भाषायें बोली , लिखी व पढ़ी जाती है ! अब जरा गौर फरमाए कि सभी राज्य व इलाके अपनी अपनी भाषा को लेकर भावुक हो गए और उसे ही उन्होंने अपने कामकाज की भाषा बनाने लगे तो दूसरे गैरभाषी व्यक्ति के लिए कितनी विपदा आन पड़ेगी !

फिर पंजाबी पंजाब में , असमिया असम में , उड़िया उड़ीसा में...... और भी बहुत सारी भाषायें जो की सबसे जयादा हमारे देश में बोली जाती है तो ऐसे तो देश में सबसे बड़ी राष्ट्रीय आपदा घोषित हो जायेगी !
और भी .......
हमारे देश में अंग्रेजी भाषा बोलने का बहुत चलन बड़ गया है ! दरअसल हमारे समाज में अंग्रेजी में बोलने वाला बहुत बड़ा ज्ञानी माना जाता है और हिन्दी में बात करने वाले को बड़ी हिकारत भरी नजरो से देखा जाता है और उसकी बातों का कोई मूल्य नही होता है फिर चाहे वोः कितना भी बड़ा ज्ञानी को न हो !
और अब तो अंग्रेजी भाषा हमारे खून में इतनी उतर चुकी है कि हम ज़ाने अनजाने में हिन्दी के साथ अंग्रेजी बोल ही देते है जैसे वो भी हिन्दी के शब्द हो......haaaaaa कितना पाप करते पाप करते है हम हिन्दी के साथ !
सच् बात तो यह है कि भाषा हमेशा सहुलियत लिए होंती ही न कि राजानीती चमकाने के लिये !
सँविधान में भाषा के लिए कानून बहुत ही लचीला बनाया है इसीलिये इसमे कोई संघर्ष नही होना चाहिए , इसके बावजूद भाषा के मसले को राजनितिक मकसद से इस्तेमाल किया जा रहा है !

Friday, October 17, 2008

हर घर में आनंदी

आजकल टीवी पर एक कार्यक्रम बहुत ज्यादा पापुलर हो रहा है जिसका नाम है "बालिका वधु " ! जी हाँ शायद आजकल हम सब इससेही देख रहे है और हो भी क्यों इसमे समाज की बुराइयों के ऊपर कटाक्ष जो किया है ! जिसे आमतोर पर हमारा पढ़ा लिखा समाज पसंद नही करता !
पर सोचने वाली बात ये है की हम इन सबसे सीखने की कोशिश भी करते है या सिर्फ़ कार्यक्रम के मुख्य पात्र के सवांद और उसकी शरारतो को देखने के लिए कार्यक्रम देखते है !
इस कार्यक्रम की कथानक आनंदी जिसके इर्द गिर्द पुरी कहानी घूमती है उसकी आयु महज १२ साल है परन्तु शानदार स्क्रीनप्ले और स्टोरी दम पर उसकी एक्टिंग देखने लायक है और बिल्कुल मेच्योर अदाकारी करती है ! एक टीवी साक्षात्कार में जब उससे पूछा गया की आपको शादी का मतलब पता है तो उसने रुक कर जवाब दिया और कहा की इसमे अच्छे -२ कपड़े और गहने मिलते है और मिठाई खाने को मिलती है ! अब आप ही बताइए की उस शहर की लड़की अविका गौर (असली नाम) को शादी का मतलब नही पता तो गाँव की लड़की को पता होगा इससे शायद ही कोई इत्तेफाक रखे !
बचपन में शादी कराकर माँ बाप ये दलील देते है कि बचपन में ही लड़की के दिल में अपने पति का नाम आ जाए जिससे आगे चलकर वो कोई दुसरे के बारे में न सोचे ! दूसरी बात यह कि जल्दी शादी कराकर माँ बाप अपने सर से बोझ उतारना चाहते है !
जैसा कि हम सभी जानते है कि हमारा भारतवर्ष एक सामाजिक देश है और हम सब समाज के अन्दर रहते है सारे काम उसी के अन्दर रहकर करना पड़ते है ! नही तो अगर आप ने समाज के नियम के बाहर काम किया तो समाज आपको ताने देगा और गलिया बुराईया देगा आपका जीना दुश्वार कर देगा !
यह हमारे देश का दुर्भाग्य ही है कि समाज आपकी खुशी में शामिल होता है परन्तु मुसीबत के छडों में भाग जाता है! जैसे कि आप किसी विधवा कि शादी करना चाहते है तो समाज आपको बहुत गालिया देगा , पर क्या समाज उस विधवा का साथ जिन्दगी भर देगा ?.... क्या उसे और उसके बच्चो को जिन्दगी भर खिलायेगा ?.... नही ना ....... !
इसीलिए संस्कृति और रूड़ीयो में बहुत फर्क होता है ! ये रुडीया हमे तोड़नी है !
यहाँ तक सुनने में आता है कि आज भी राजस्थान में लड़कियों को जन्म पर ही मार दिया जाता है उन्हें दूध से भरे कुण्ड में डाल दिया जाता है | उन्हें खटिया (चारपाई) के नीचे दबा दिया जाता है !


अरे बेटियो के दुश्मनों पहले ये बताओ कि अगर बेटिया नही होगी तो तुम किधर से आयोगे !

Sunday, October 12, 2008

रावण

आजकल एक रावण का बहुत शोर मच रहा है भारत में ! जी क्या आप नही समझे वैसे है तो वो इन्सान पर उसमे इंसानियत बची कहाँ है ! मुझे लगता है आप अभी तक नही समझे वैसे गलती आपकी नही है , मेरी है , क्योकि हम सभी जानते की भारतवर्ष में बहुत सारे रावण है !
दरअसल मैं बात कर रहा हूँ...... रा ....राज ठाकरे की !
आजकल महाराष्ट्र पर उसी का ही तो राज चलता है ! अरे भाई किसको मुंबई में रहना है किसको जाना है किसको क्या भाषा बोलनी है ये सब वही तो बताते है अरे उनका बस चले तो वो महाराष्ट्र (मुंबई) में घुसने के लिए वीजा प्रक्रिया शुरू कर दे ! मुंबई में जाने से पहले महाराष्ट्र दूतावास से इजाजत लेना पड़े ! घंटो लाइन में खड़े होकर उसके साक्षात्कार प्रक्रिया (इंटरव्यू प्रोसेस) से गुजर कर वीजा मिले ! मुश्किल तो तब आएँगी जब आप काम की तलाश में महाराष्ट्र जा रहे है , फिर तो आप भूल जाइये क्यूंकि हो सकता है राज ठाकरे आउटसोर्सिंग पर बैन लगा दे या लगा रखा हो !
हो तो यहाँ तक भी सकता है की आपको अपने साथ एक दुभाषिये को भी लेकर जाना पड़े क्योकि अगर मराठी भाषा बोली व पढ़ी व लिखी जाती हो तो आप सच मानिये मुसीबत में फंस जायेंगे !
शायद कुछ दिनों बाद बॉलीवुड को या तो अपनी फिल्मो की भाषा बदलनी पड़े या उन्हें कोई और राज्य देखना पड़े !
ये भी सम्भव है की मुंबई का नाम बदलकर मराठा नगरी या मराठापुरी कर दिया जाए !
या ये भी हो सकता है की भारत पाकिस्तान के बटवारें की तर्ज पर यहाँ भी बटवारा हो जाए और बड़ी संख्या में हिन्दी भाषी लोगो को बस ,रेल, प्लेन के द्वारा पलायन करना पड़े !

पर ये तो कल्पना मात्र पुरा भारतवर्ष शायद ही ऐसा चाहेगा ! लेकिन ऐसा न हो .. की इस लेख को पड़कर राज ठाकरे को आईडिया न मिल जाए और कही यह न सोचे की ऐसा करने में बुराई क्या है या मैंने तो ये पहले सोचा ही नही था !
लेकिन सच कहू दोस्तों उस दिन बहुत दुखी हुआ था जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ताओ ने महाराष्ट्र के अन्दर हिन्दी भाषियो (यूपी,बिहार) के लोगो को सरेआम पीटना शुरू किया कितना दहशतगर्दी का वातावरण पैदा किया गया ! अपने आजाद देश में अपने ही लोगो के द्वारा पिटाई कितनी आत्मग्लानी से भर देती है ! इससे अच्छा तो गुलामी के दिनों में था ! कम से कम वो लोगो को फालतू परेशां तो नही करते थे !

Thursday, October 9, 2008

एक पिता का खत, बेटे के बारे में

अमेरिका के मशहूर राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने अपने बेटे के हेडमास्टर को एक चिट्ठी लिखी थी। बरसों बाद भी एक पिता की सलाह आज उतनी ही खरी है, जितनी कल थी। चिट्ठी कुछ इस तरह थी-
'उसे बहुत कुछ सीखना है। मैं जानता हूं कि सभी इंसान ईमानदार और सच्चे नहीं होते, लेकिन हो सके तो उसे किताबों के जादू के बारे में सिखाइए। इसके अलावा हो सके तो उसे चीजों के बारे में सोचने का वक्त भी दीजिए, ताकि पंछियों के आसमान में उड़ान भरने, मधुमक्खियों के धूप में थिरकने और हरे-भरे पहाड़ों पर फूल के खिलने के रहस्यों पर सोच सके। स्कूल में उसे सिखाइए कि धोखा देने से असफल होना अच्छा है।
भले ही दुनिया उसके विचारों को गलत बताए, लेकिन वह अपने सोच पर भरोसा रखना सीखे। उसे विनम्रों के साथ विनम्रता और सख्त इंसानों के साथ सख्ती करना सिखाइए। उसे इतनी ताकत दीजिए कि वह लकीर का फकीर होकर भीड़ के साथ न चल पड़े। उसे सिखाइए कि वह सबकी बातें सुने, लेकिन उन्हें सच की कसौटी पर कसे और केवल सही चीजों को ही मंजूर करे। उसे सिखाइए कि कैसे दुख में भी हंसा जाता है... कि आंसू अगर बहे तो उसमें कोई शर्म नहीं है।

उसे सिखाइए कि सनकी लोगों को झिड़क दे और बहुत मीठी-मीठी बातों से सावधान रहे। अपनी ताकत और दिमाग की ऊंची कीमत तो लगाए, लेकिन अपने दिल और आत्मा का सौदा न करे। उसे सिखाइए कि अगर उसे लगता है कि वह सही है तो सामने खड़ी हुई चीखती भीड़ को अनसुना कर दे। उसके साथ नरमी से पेश आइए, लेकिन हमेशा गले से लगाकर मत रखिए क्योंकि आग में तपकर ही लोहा फौलाद बनता है। उसे इतना बहादुर बनाइए कि वह आवाज उठा सके, इतना धैर्यवान बनाइए कि बहादुरी दिखा सके। उसे खुद में भरोसा करना सिखाइए, ताकि वह इंसानियत में भरोसा रख सके।

मेरी उम्मीदें ढेर सारी हैं, देखते हैं कि आप क्या कर सकते हैं। मेरा बेटा एक अच्छा बच्चा है।''

अब्राहम लिंकन

सिंगुर के अंगूर


अभी हाल ही में टाटा को सिंगुर से नेनो कार प्लांट को बंद करना पड़ा ! इसके पीछे बड़ी राजनीती थी ! जिसके आगे रतन टाटा जैसा उद्योग पति भी बेबस दिखा ! सभी जानते है , बंगाल के मुख्यमंत्री जो की ख़ुद एक कम्युनिस्ट है ने टाटा को बंगाल से न जाने के लिए सम ,दाम ,दंड , भेद कर दिया पर ममता बेनर्जी जी की इस सिंगुर आन्दोलन की नेता है ने बहुत सही समय पर अपनी राजनीतिक रोटिया सेकी !
जब टाटा ने सिंगुर में कदमरखा तो उनके मुहँ में पानी आ गया की ये बहुत अच्छा मौका है और अब इसके सहारे मै गरीब किसानो की सच्ची हितेषी बनूँगी , फिर उन्होंने उन किसानो को जिनको कुछ पता भी नही था या कुछ सोचा भी नही था की उनके साथ अन्याय हुआ है या न्याय वो तो इस बात से बेखबर थे उन भोले भले किसानो और मजदूरों के कान भरना शुरू कर दिए !
अब ये सब करने के बाद ममता बेनर्जी ने अपने पैरो पर कुल्हाडी मार ली है क्योंकि सिंगुर की घटना के बाद और भी उद्योगपति वहां आने से कतरायेंगे और अगर मान लो ममता बेनर्जी कभी मुख्यमंत्री बनी तो वो किस मुँह से किस उद्योगपति को कहेंगी की आए और हमारे राज्य में निवेश करे !
वैसे सिंगुर की घटना कोई पुराणी नही है इससे पहले समय समय पर ऐसी घटनाये सामने आती रही है आजादी के बाद ५० के दशक में मार्क्सवादी नेताओ ने गरीब किसानो और मजदूरों के साथ मिलकर हिंसात्मक आन्दोलन किया था तो इस बात में कम्युनिस्ट भी कोई दूध के धुले नही है इसीलिए शायद पुराने गलतियों से सबक लेकर बुद्धदेव भट्टाचार्य ने टाटा के समर्थन में एडी चोटी का जोर लगा दिया !
यह एक अपने की मानसिकता ही है की यहाँ हर चीज से फायेदा उठाने के लिए लोग लालायित रहते है ! अरे जो बात देश के राजस्व और तरक्की में योगदान देगी कम से कम उससे तो मत रोको !
पर शायद ममता इस बात से फूली नही समां रही होंगी की उन्होंने अपनी जिद के आगे टाटा जैसी कंपनी को भी घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया तो वह शायद इस ग़लतफ़हमी में है क्यूंकि ये पब्लिक है सब जानती है !
और अगर वो इस ग़लतफ़हमी में जी रही है की उन्होंने सिंगुर के लोगो को उनका हक़ दिला दिया है तो वो ये समझ ले की न ही उन्होंने अपना भला किया है , और न ही सिंगुर वालों का क्योंकि ये नेता लोग अपना काम करके उन्हें वैसे ही छोड़ जायेंगे जैसे की वो पहले ही थे , इसीलिए अपने बारे में ख़ुद सिंगुर को आत्ममंथन करना पड़ेगा !

Wednesday, October 8, 2008

आखिर कब तक

अभी हाल ही में समाचार चैनल देख रहा था ! उसमे दिल्ली धमाको में पीड़ित लोगो के बारे में बता रहे थे उसमे एक सिमरन नाम की बच्ची (जो की ३ साल की है ) के बारे में बता रहे थे की किस तरह से उसने अपने पिता , दादा और बुआ को खो दिया और उसकी माँ ख़ुद घायल अवस्था में अस्पताल में पड़ी है !
ये पूरा परिवार एक बड़े पेड़ के नीचे रहता है तथा वहां उनकी चोटी सी दुकान थी जहा बम धमाका हुआ था !
इस घटना के बाद तो उस बच्ची की हँसी तो कही गयाब हो गई है ! जैसे जिस तरह से पहले हँसा करती थी आतंकियो ने उसके परिवार से भी दुश्मनी निकाली , जबकि उसका तो दूर दूर तक कोई ताल्लुक नही था !
जिन्दगी में कभी कभी ऐसे पल आते है जब सब अचानक ख़त्म हो जाता है , सब कुछ एक साथ ! तब उस समय क्या करना चाहिए खासतौर से जब शुन्य से शुरुआत करनी हो जिस तरह से चिडिया अपना घोसला एक एक तिनका जोड़कर बनाती है ! वैसे ही शायद इंसान शुरू करता होगा !
दोस्तों आतंक अब भारत के लिए नासूर बनता जा रहा है ! ये ऐसी समस्या है जो की ऐड्स की बीमारी से भयंकर है ! और इसका इलाज उससे पहले ढूँढना पड़ेगा !
इस समय पुरा भारत समस्यों से ग्रस्त होता जा रहा है पहले कोशी नदी में आई बाड़ जिससे बिहार परेशान था ३२ लाख लोगो को अपने घरो से दूर जाना पड़ा उसके बाद पाकिस्तानी फौज द्वारा नियंत्रण रेखा का उल्लघन और घुसपैठ की कोशिश उसके बाद कर्नाटक और उड़ीसा में जारी ईसाई विरोधी दंगे और लगातार हर शहर में फट रहे बम , पुरा मुल्क इस समय दहशत में जी रहा है !
मैं उम्मीद करता हूँ की आगे आने वाले सालों में अगर अपने पुराने लेखो को पढूं तो कम से कम यही सोचू की आज कितनी शान्ति और स्म्रध्दि है .... आमीन

ईश्वर दर्शन के सकरे रास्ते

जोधपुर के मेहरानगढ़ किले में स्थित चामुंडा माता मन्दिर में कोई सवा दो सौ लोग अपनी जान गँवा चुके है ! मृतको की संख्या और भी बाद सकती है ! कोई दो माह पूर्व ही हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में नैना देवी मन्दिर की सीढियों पर मची श्रध्दालुओ की भगदड़ में लगभग सौ लोग मारे गए थे ! मृतको में अधिकांश महिलाये थी ! अपने आराध्य देवी देवताओ की चोखट पर श्रध्दालुओ के इस तरह की मौत मैं समां जाने की घटनाये न तो पहली है और न अन्तिम !
उज्जैन स्थित महाकालेश्वर के मन्दिर या फिर ओम्करेश्ह्वर के मन्दिर मैं हुए भगदड़ मौते उनके परिजन की स्मृतियों मैं आज भी जिन्दा है उन्होंने अपने नजदीकी लोगो को खोया है !
इन तमाम बातों में दो बातें हमेशा एक जैसी रहती है एक तो यह की श्रद्धालुओ की मौते केवल अव्यवस्थाओं के कारण हुई ! दूसरी यह की इन मौते के लिए किसी को जिम्मेदार करार देकर सजा नही दी गई , उनकी रपट भी प्राप्त हुई पर मौतों का सिलसिला नही थमा एक स्थान पर होने वाले हादसों से सबक दूसरे स्थानों पर पर नही लिए जाते
जोधपुर के मन्दिर के हादसे के बाद लगता नही की इससे दोबारा कोई सबक लिया जायेगा ! राजस्थान सरकार के द्वारा घटना की न्यायिक जांच के आदेश दिए जा चुके है ! जांच के आदेश तो ३ अगस्त नैना देवी में मची भगदड़ के बाद भी दिए गए थे जो चले गए उन्हें भी , और जिन परिवारों के सहारे छूट गए उन्हें भी इन जांच रपटो से फर्क पड़ने वाला नही ! गौर किया जाए की करोडो रूपये का चढावा प्रतिवर्ष भगवान् के नाम पर उन सभी धार्मिक स्थलों को प्राप्त होता है जंहा श्रद्धालु बड़ी संख्या मैं रेलों और बसों में धक्के खाकर आस्था के साथ मन्नते लेकर पहुँचते रहते है ! किसी भी तरह का भय इन भक्तो को अपनी आस्था से विचलित नही करता ! इन धार्मिक स्थलों पर चंदे और दान में प्राप्त होने वाली कोरोडो की राशिः में उन गरीबो का योगदान भी होता है जिनके पास दो वक्त के खाने के लिए भी पैसे नही जुट पाते है ओ के दुर्घट्नाये बाद बैठी जाने वाली जाँच के संदर्भ या निष्कर्ष में इस सत्य के दर्शन कभी नही होते है की भक्तो की ओर से प्राप्त लाखो करोडो के धन के बावजूद भगवान के दर्शन तक पहुचने करग बहुत सकरा है पुर जोधपुर घटना की जांच की रपट देने के लिए आयोग ने ३ माह का समय लिया है इस बीच कलेक्टर ,एसपी सहित ढेर सारे अधिकारियो के कर्तव्य पालन में लापरवाही के आरोप में अपने वर्तमान पदों से हटा दिया गया है हरेक दुर्घटना के बाद राजनीतिक सत्तायो द्वारा या तो मृतको के परिजनों को पैसे बांटे जाते है फिर अफसरों को ताश की गद्दी की तरह ऐसे ही फेटा जाता है सकारात्मक कुश भी निकलता नही !
जम्मू के रघुनाथ मन्दिर में या गाँधी नगर के स्वामीनारायण मन्दिर या किसी अन्य धार्मिक स्थल पर आतंकवादी हमलो में होने वाली दस बीस मौते भी राष्ट्रीय चिंता का विषय बन जाती है पर नैना देवी या चामुंडा माता के यहाँ अव्यवस्था , लापरवाही तथा भ्रष्टाचार के कारण सेक्दो लोगो का पैरो तले कुचल कर मर जाना किसी राष्ट्रीय शर्म या क की मांग नही करता ! नैना देवी और जोधपुर में ही हुए दो घटनाओ में तक़रीबन चार सौ लोग मारे गए और सैकडो घायल हुए पर हमारी सवेंदना शुन्य मोटी चमड़ी हरकत में आने को तैयार नही मौत का सज्ञान लेने में भी समूची व्यवस्था ने अपने पैमाने बना रखे है !
इस तथ्यों की और ध्यान दिलाया जाना भी जरूरी है की इस तरह की घटनाये और मौते केवल उत्तर भारत में ही क्यो होती है ? न तो धर्म के प्रति आस्था में दक्षिण भारत लोग उत्तर की तुलना में पीछे है और न ही कुछ ऐसा की धार्मिक स्थलों की संख्या उत्तर से कम है तिरुपति हो अयप्पा का धार्मिक स्थल या की रामेश्वरम - इन जैसे और भी स्थानों में भक्तो का टाटा लगा ही रहता है शायद नारियल भी उत्तर भारत के मुकाबले में इस जगह ज्यादा फोडे जाते है पर वहा कभी सुनाने में नही है की फलानी जगह पर ऐसा कुछ हो गया है !
सरकारों के लिए इससे ज्यादा सुकून की बात क्या हो सकती है की इस तरह की घटनाये में बच जाने वाले तोह ईश्वर का आभार मानते है मृतको के परिजन सब कुछ भगवान की इच्छा मान कर अपने दिल को समझा लेते है ! दुनिया के और किसी मुल्क में ऐसा नही होता है व्यवस्था की लापरवाही के कारन होने वाली मौतों पर चर्चा करना इसीलिए भी जरुरी है की इस तरह की घटनायों पर रोक नही लग पा रही है भक्तो की भीड़ भी लगातार बढ़ रही है इस भीड़ को काबू में करना भी जरुरी है !
मृतको के परिजनों को दिलासा देने पहुंचे राहुल गाँधी ने पुलिस प्रशासन और पीडितो के से केवल एक ही सवाल किया की हादसा कैसे हुआ ? पर उसका जवाब किसी पर नही था कारण साफ है की राहुल का अगला सवालफिर यही होता की 'तो फिर ऐसा क्यो नही किया गया ? सरे सवालों के जवाब सबको पता है राहुल को भी ! मुहँ कोई नही खोलना चाहता !
इस भीड़ मे आजकल कौन सुनता है !

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