Wednesday, December 3, 2008

दो निशानेबाजों की कहानी !

इस लेख की प्रेरणा मुझे मेंरे मित्र से चर्चा की दौरान मिली जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि निशानेबाजों में भी फर्क होता है !
दरअसल दो निशानेबाज जिनमे से एक ने अपने देश का नाम ऊँचा किया तो दूसरे ने अपने माँ बाप का नाम ऊँचा किया ! फिर भी दोनों के काम में बहुत बड़ा अन्तर था !

पहला निशानेबाज जिसने ओलिम्पिक्स में भारत के लिए पहला व्यक्तिगत गोल्ड मैडल जीता , और पूरे देश को गौरवान्वित होने का मौका दिया और पूरे देश ने उसे पलकों में बिछा लिया , हमारे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने उस निशानेबाज को फ़ोन कर बधाई दी बल्कि उनसे और उसके परिवार से भी मिले बाकायदा सभी का वीआईपी जैसा स्वागत हुआ , और तो और सारे राज्य उसपर वारें जा रहे थे कोई देता उसे 5 लाख तो कोई 10 लाख कुल मिलकर पुरस्कारों की कीमत पहुँची ३ करोड़ तक साथ ही विज्ञापन मिले अलग से !

हमारा दूसरा निशानेबाज एक कमांडो है उसने भी देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया वो भी अपने देश लिए जान पर खेलकर लाया आजादी ! एक ऐसी आजादी जिसमे भारत के लोगो को दिया हौंसला और दी एक ऐसी आशा जिसमे किसी के सपने ना मर सके ! उसे भी पुरस्कार मिला वो भी 5 लाख का ! उसके पास किसी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का फ़ोन नही आया और ना ही उसके परिवार से कोई मिला और जो मिलने भी गया उससे भी उसे मिली गाली !

क्या इस देश में स्वर्ण पदक की कीमत 3 करोड़ है जबकि जान की कीमत के लगते है सिर्फ़ 5 लाख ? क्या इस देश में स्वर्णपदक अब देशभक्ति से ज्यादा मायने रखने लगा है ? क्या यह ये वहीं देश है जिसमे भगत सिंह ने अपनी जान सिर्फ़ इसलिए दी की उनसे प्रेरणा लेकर हजारों भगत सिंह पैदा हो सके और अपने देश पर मर मिटें !

पर क्या अब कोई माँ-बाप अपने बच्चे को आर्मी या देश के लिए मर मिटने को कहेगा ? जिस देश में देशभक्तों का ऐसा सम्मान होता है , जिस देश में सरकार बचाने के लिए सभी दलों के लिए रात्रि भोज का आयोजन किया जाता है परन्तु जवानों के लिए ढंग के बुलेटप्रूफ जैकेट नही मिलते ! जवानों के ताबूतों पर घूस खाई जाती है ! नही शायद अब नही कोई कहेंगा की बेटा जाओ और देश की रक्षा करो !

पर जाते जाते एक बात की अभिनव और संदीप, इन दोनों की निशानेबाजी में एक बहुत बड़ा अन्तर ये था कि संदीप जिस चीज को निशाना लगा रहे थे उन्हें पलटकर गोलिया का जवाब भी मिल रहा था परन्तु अभिनव के साथ ऐसा कुछ नही था !

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इस भीड़ मे आजकल कौन सुनता है !

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