अपने ही आप से , द्वंद है मेरा
है गतिरोध , अपने आप से
क्यों शून्य बनाकर तुमने
छोड़ दिया इस जहाँ में !
इस शून्य को एक बनाने में
जतन किए थे , मैंने
कितने
एक बिन्दु से चलता था मैं
घूमकर आ जाता उस पर
हसरत मेरी जाती रही , हर सपना मेरा टूटता रहा !
इस शून्य की खाई में गिरकर , पल पल मरता रहा !
2 comments:
A nice piece if writing. Keep it up!
शून्य! an Indian Concept.
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