Monday, January 26, 2009

ऐ मेरे गणतंत्र तुम अब बूढे हो गए हो !

मेरे भारत के गणतंत्र अब आप अपने उम्र के साठवे वर्ष में कदम रख चुके है और अब और भी बूढा हो चले हो ! ऐसा गणतंत्र जो अबतक ना जाने कितने बसंत देख चुका है बहुत कुछ भुगत चुके हो ! ना जाने कितने आए और कितने गए और ना जाने कितने आपके सामने बड़े हुए और ना जाने कितनो ने आपको आंखे दिखाई ! आजकल मेरे गणतंत्र आपको कम दिखाई देता है अरे भाई हाँ थोड़ा झुककर भी चलते हो , कुछ लोग है जो इसी मजबूरी का फायदा उठाकर आपका हाथ पकड़ कर चाहे जहाँ ले जाते है जिधर चाहे बैठा देते है और आप भी चुपचाप बैठ जाते हो ! अब आपकी सुनने वाला कोई नही जिसका मन किया आपको गालियाँ दी पर कहीं फायदे की बात आनेपर आपको पुचकारा भी !


सच पूंछा जाये दोस्तों तो आजकल दादाजी (गणतंत्र ) की घर में चलती नही है ! और ना ही किसी को इनका डर रह गया है कुछ बच्चे इतने बिगड़ गए की आपके हाथ से निकल गए फिर चाहे वोह रामलिंगा हो या औरैया का विधायक या फिर तेलगी , कहीं मेरठ के पार्को में बैठे लड़के लड़किया हो या फिर पब में लड़कियों की पिटाई या फिर वो हो रक्षा सौदों में दलाली का मामला या फिर सैनिको के ताबूतों का मामला , तुम चुपचाप क्यों रह गए बताओ ? , तुमने तो आँगन में खटिया लगा ली और बैठ गए धूप सेकने , जरा घर में घुस कर देखा की की परिवार में चल क्या रहा है ! तुम्हे सच बताऊँ अब तुम्हारा नाम रह गया है तुम्हारा स्ट्रक्चर अब बस किताबों में रह गया है !


तुम्हे पता है इस देश में घोटालों करने वाले एक भी नेता को सजा नही होती बस ज्यादा से ज्यादा इस्तीफा या फिर पार्टी निष्कासन होता है तुम्हे पता है इस देश में लड़का लड़की एक पार्क में नही बैठ सकते है ! और भी बहुत चीजे है दादा जी अब तुम्हे क्या क्या बताऊ मैं नही चाहता आप हार्ट अटैक से मर जाए ! बस यहीं कहना है की इस देश में प्रधानमंत्री बनना इज्जत का सवाल हो जाता है , यहाँ अब सरकार बचाने के लिए फिक्सिंग की जाती है और बाद में स्टिंग ऑपरेशन करके कीचड़ उछाली जाती है ! अब देश में बच्चे की भूख की चिंता से ज्यादा चंद्रयान की चिंता की जाती है ! अब रहने दो क्या फायदा जो मैं बोलूँ , तुम तो शर्माने लगे हो बस यहीं कहूँगा कि आजकल मुझे दूसरे राज्य में जाने से डर लगता है पता नही कौन मुझपर हमला बोल दे ! तुम्हे ये भी बताऊँ अब मैं किसी भीड़-भाड़ वाले इलाके में नही जाता ना जाने कहाँ बम फट जाये होटल में भी खाने नही जाता हूँ इसीलिए आजकल अपने घर पर खाता हूँ ! पर अब तो घर में भी खाने के लिए कुछ नही बचा, मेरा सारा पैसा मंदी और शेयर बाज़ार डकार गए बाकी अनाज है उसे भी सरकार निर्यात दूसरे देशों को कर देती है जिससे देश में पैसा आए !


पर दद्दा सच्ची अब तो घर भी नही हैं , ये जो कोसी नदी थी न , इसका सरकार ने चेतावनी के बावजूद कुछ किया ही नही ! हम जैसे 32 लाख लोग इसकी शिकार हुए ! इस साल मैंने पूरी सर्दी टेंट में निकाली है एक लोकल नेता आया था मुझे एक शर्ट में देखा तो शाल में दे गया बस आजकल उसी का सहारा हैं ! दादा मुझे तुम्हारी याद आती है तुमने पैदा होते समय तो नेहरू ,पटेल और अम्बेडकर से बड़ी बातें की थी कि अब मैं ये करूंगा , वो करूंगा ! पर तुम भी झूठे निकले, क्या इस देश में मेरा कोई नही ! तुम्हे पता है एक बड़े कवि ने कहा था कि सबसे खतरनाक होता है सपनो का मर जाना , और अब मेरे सपने दम तोड़ने लगे है ! अब तो बस मैं यहीं चाहता हूँ कि जिस दिन तुम पूरी तरह मर जाओंगे उसके बाद फिर कभी इस धरती पर जनम मत लेना क्योंकि फिर किसी नए गणतंत्र का यहीं हाल होगा !

1 comment:

Brijesh Choudhary said...

dont have words to say about this article. amazing written man.
bas yaar kya kahoo ab kuch zaban par nahi aata kahne ko.
bas yahee kahna hai ki a masterpiece article.....well well well well done.
keep it up....

इस भीड़ मे आजकल कौन सुनता है !

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