Thursday, January 29, 2009

रेल की आवाज और कशमकश की जिन्दगी

रे का नाम आते ही हमारे जहन में यात्रा का ख्याल सबसे पहले आता है , स्टेशन पर आती हुई तेजी से इसकी आवाज अचानक हमारा ध्यान खींच लेती है ! सभी लोग तेजी से आती हुई और जाती ट्रेन की खिड़कियों में झांकने की कोशिश करने लगते है, ट्रेन के अन्दर की जिन्दगी भी बड़ी अजीब होती है ! अक्सर यात्रा के दौरान नए नए और अलग किस्म के और मूड के लोग मिलते है मेरा तो मानना है की इस देश की ट्रेन में आप बैठकर बहुत बड़े कहानीकार बन सकते है क्योंकि हर तरह लोगो की अलग अलग कहानी होती है और अलग विचार होते है !

कोई तो इतने गंभीर होते है की अपने चेहरे पर अजीब सी भावभंगीमाये बनाते है कि सामने वाला बात करने की इच्छा रखता होगा तो चाह कर भी ना कर पाए तो कोई इतने ज्यादा गंभीर बनने की कोशिश करते है कि अपने मन को मार कर बात नही कर पाते , पर बात करना चाहते है ! कुछ ऐसे होते जो अचानक बात शुरू कर देते है इनकी बातों की शुरुआत कुछ कुछ समस्या से होंगी और फिर वो जो शुरू होते है तो रुकने का नाम नही लेते और तो कोई उन्हें अपने जैसा आदमी मिल गया जो उनकी हाँ में हाँ मिला रहा हो, फिर देखिये उनकी बातो में मायावती की कुर्सी और दिल्ली की सरकार गिरते गिरते बच जाती है ! इसी में कुछ उस टाइप के लोग होते है जो बहुत बहुत जोर जोर से बोलते है और बातें करके अपने सारे राज अगल बगल वाले लोगो को बता देते है और वहां बैठे लोग उनका नाम उनके बच्चो की क्लास , सेलरी और ऑफिस सब कुछ जान जाते है ! कई बार भूख लगने पर किसी और खाना खाते देख बड़ी भूख लगने लगती है आप लोगों का तो पता नही पर मेरे साथ अक्सर ऐसा होता है फिर चाहे वो खाना मुझे घर में पसंद हो या हो ! अच्छा हाँ इसमें दिल भी बड़े मिलते है सच्ची , कोई लड़का लड़की सामने बैठे होतो आँखों ही आँखों में सब कुछ हो जाता है !

अगर आपके पास रिज़र्व सीट है तो आपके मजे है कभी कभी मजे भी चकना चूर हो जाते है जब आपकी सीट पर कोई बैठा होता है तो आप बड़े गर्व से कहते है सीट हमारी है और जब वो चला जाता है बड़े गर्व से फूल जाते है जैसे रेलवे आप ने खरीद ली हो ! कुछ तो इस टाइप के केरेक्टर आते है जो केवल सोने ही उनका लक्ष्य है अपने साथ हवा से फूलने वाला तकिया लेकर आते है और सबसे पहले ऊपर की सीट देखते है जिसमे सोने को मिल जाए ! अच्छा कभी आपका ट्रेन के टॉयलेट में जाना हो, तो आपका तरह तरह का साहित्य पढने को मिलेंगा उसका उद्गम कहाँ से हुआ, कब हुआ पता नही पर वो इतिहास बन जाता है कहने का मतलब है रेलवे टॉयलेट साहित्य के मामले में बहुत रिच है ! कभी किसी नवजात शिशु का रोना और किसी बूढ़े की खांसी की खुल खुल सब कुछ होता है यहाँ ! रेलगाड़ी का किसी अनजान स्टेशन पर रुकना कोतुहल करता है यहाँ कौन रहता है यहाँ की भाषा कैसी होंगी ! रात के अंधेरे में दूर से दिखाई देती बल्ब की रौशनी या फिर कोई घर, जहाँ सन्नाटा पसरा हुआ हो !


दोस्तों एक वर्ग और भी है जो रेल सफर करता है भिखारियों का ! जी हाँ कई बार अचानक आपके पैरो के नीचे कोई बच्चा अपनी शर्ट से रेल के फर्श को साफ करता हुआ देखा होगा ! कई लोग उस पर तरस खाकर उसे पैसे देते है ! अभी किसी ने उससे पूछा की तू किधर रहता है तेरे माँ बाप के साथ क्या हुआ मुझे तो लगता है शायद उसे ख़ुद नही पता होता होंगा की वो कौन से गाड़ी में बैठा है उसे तो उसके आकायो ने बता दिया है इसमे बैठ जा और शाम को इस गाड़ी में आजा ! अगर ऐसा है तो फिर ये किसी भी ट्रेन में बैठकर भाग क्यों नही जाते, शायद इसीलिए क्योंकि शायद उस समय इनपर कोई नजर रखे रहता है

सवाल ये है की एक और जिन्दगी है जो रेल में सफर करती है पर हम इस पर ज्यादा ध्यान नही देते हजारों लाखो लोग ट्रेने में बैठे हुए है अपनी ख़ुद की कहानी गड़ते है!

: दिल्ली के मित्र विकास द्वारा कहे जाने पर ये लेख लिखा गया है !

1 comment:

Unknown said...

great yaar . really great thinking.
very well written .well done ,great observation

इस भीड़ मे आजकल कौन सुनता है !

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