Friday, July 17, 2009

नया आवरण !

मुझमें और मेरी आत्मा में क्या फर्क है ?
शायद ये कि मैं दिखता हूँ , वह दिखती नहीं
शायद ये कि मैं अपवित्र हूँ , और वो पवित्र
शायद ये कि मर सकता हूँ मैं एक दिन , लेकिन वो नहीं !

या शायद ये कि इस जहाँ में मेरे साथ है मेरे अपने लेकिन , उसके साथ कोई नहीं !
क्यों तुम गुमनाम सी चुपचाप सी देखती रहती हो वो सब ? , जो मैं दिन-भर करता हूँ
क्यों तुम किसी मोड़ पर आकर यह नहीं कहती कि मैं कर रहा हूँ जो भी , वह ग़लत है या फिर सही !
या फिर तुम्हे कोई फर्क नही पड़ता कि मुझे मिले स्वर्ग या नरक , जाना होगा तुम्हे मुझे एक दिन छोड़कर,
और तज लोगी फिर से कोई नया आवरण !

No comments:

इस भीड़ मे आजकल कौन सुनता है !

Website templates

Powered By Blogger