Thursday, October 9, 2008

एक पिता का खत, बेटे के बारे में

अमेरिका के मशहूर राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने अपने बेटे के हेडमास्टर को एक चिट्ठी लिखी थी। बरसों बाद भी एक पिता की सलाह आज उतनी ही खरी है, जितनी कल थी। चिट्ठी कुछ इस तरह थी-
'उसे बहुत कुछ सीखना है। मैं जानता हूं कि सभी इंसान ईमानदार और सच्चे नहीं होते, लेकिन हो सके तो उसे किताबों के जादू के बारे में सिखाइए। इसके अलावा हो सके तो उसे चीजों के बारे में सोचने का वक्त भी दीजिए, ताकि पंछियों के आसमान में उड़ान भरने, मधुमक्खियों के धूप में थिरकने और हरे-भरे पहाड़ों पर फूल के खिलने के रहस्यों पर सोच सके। स्कूल में उसे सिखाइए कि धोखा देने से असफल होना अच्छा है।
भले ही दुनिया उसके विचारों को गलत बताए, लेकिन वह अपने सोच पर भरोसा रखना सीखे। उसे विनम्रों के साथ विनम्रता और सख्त इंसानों के साथ सख्ती करना सिखाइए। उसे इतनी ताकत दीजिए कि वह लकीर का फकीर होकर भीड़ के साथ न चल पड़े। उसे सिखाइए कि वह सबकी बातें सुने, लेकिन उन्हें सच की कसौटी पर कसे और केवल सही चीजों को ही मंजूर करे। उसे सिखाइए कि कैसे दुख में भी हंसा जाता है... कि आंसू अगर बहे तो उसमें कोई शर्म नहीं है।

उसे सिखाइए कि सनकी लोगों को झिड़क दे और बहुत मीठी-मीठी बातों से सावधान रहे। अपनी ताकत और दिमाग की ऊंची कीमत तो लगाए, लेकिन अपने दिल और आत्मा का सौदा न करे। उसे सिखाइए कि अगर उसे लगता है कि वह सही है तो सामने खड़ी हुई चीखती भीड़ को अनसुना कर दे। उसके साथ नरमी से पेश आइए, लेकिन हमेशा गले से लगाकर मत रखिए क्योंकि आग में तपकर ही लोहा फौलाद बनता है। उसे इतना बहादुर बनाइए कि वह आवाज उठा सके, इतना धैर्यवान बनाइए कि बहादुरी दिखा सके। उसे खुद में भरोसा करना सिखाइए, ताकि वह इंसानियत में भरोसा रख सके।

मेरी उम्मीदें ढेर सारी हैं, देखते हैं कि आप क्या कर सकते हैं। मेरा बेटा एक अच्छा बच्चा है।''

अब्राहम लिंकन

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