Saturday, November 1, 2008

मेरी भाषा हिन्दी है तेरी क्या है .....

आजकल पूरे देश में भाषाई राजनीती का चलन बहुत बढ गया है ! हर व्यक्ति अपनी भाषा दूसरे पर थोपने लगा है ! यह लेख इसीलिए लिखा जा रहा है , क्योकी हाल ही के दिनों में पूरे भारतवर्ष में भाषाई मामले टूल पकड़ रहे है ! एक तरफ़ महाराष्ट्र में जहाँ मराठी में कामकाज बोलचाल की भाषा के स्वर उग्र हुए , वही दूसरी ओर कर्नाटक सरकार ने साइन बोर्ड कन्नड़ में लगना अनिवार्य कर दिया है !

बात अगर यहाँ तक रहती है तो शायद ठीक हो क्योकि हम सभी जानते है कि भारत में अनेक भाषायें बोली , लिखी व पढ़ी जाती है ! अब जरा गौर फरमाए कि सभी राज्य व इलाके अपनी अपनी भाषा को लेकर भावुक हो गए और उसे ही उन्होंने अपने कामकाज की भाषा बनाने लगे तो दूसरे गैरभाषी व्यक्ति के लिए कितनी विपदा आन पड़ेगी !

फिर पंजाबी पंजाब में , असमिया असम में , उड़िया उड़ीसा में...... और भी बहुत सारी भाषायें जो की सबसे जयादा हमारे देश में बोली जाती है तो ऐसे तो देश में सबसे बड़ी राष्ट्रीय आपदा घोषित हो जायेगी !
और भी .......
हमारे देश में अंग्रेजी भाषा बोलने का बहुत चलन बड़ गया है ! दरअसल हमारे समाज में अंग्रेजी में बोलने वाला बहुत बड़ा ज्ञानी माना जाता है और हिन्दी में बात करने वाले को बड़ी हिकारत भरी नजरो से देखा जाता है और उसकी बातों का कोई मूल्य नही होता है फिर चाहे वोः कितना भी बड़ा ज्ञानी को न हो !
और अब तो अंग्रेजी भाषा हमारे खून में इतनी उतर चुकी है कि हम ज़ाने अनजाने में हिन्दी के साथ अंग्रेजी बोल ही देते है जैसे वो भी हिन्दी के शब्द हो......haaaaaa कितना पाप करते पाप करते है हम हिन्दी के साथ !
सच् बात तो यह है कि भाषा हमेशा सहुलियत लिए होंती ही न कि राजानीती चमकाने के लिये !
सँविधान में भाषा के लिए कानून बहुत ही लचीला बनाया है इसीलिये इसमे कोई संघर्ष नही होना चाहिए , इसके बावजूद भाषा के मसले को राजनितिक मकसद से इस्तेमाल किया जा रहा है !

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इस भीड़ मे आजकल कौन सुनता है !

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